________________
प्रस्तावना
द्वारा मिली थी। ऋवि ने इस कृति की प्रशम्लि में उनका साभार उल्लेख किया है। कवि धान मंठी उदयपुर में प्रतिदिन प्रवचन किया करते थे । एक बार उन्होंने महापुराण पर प्रवचन किया। इसी महापुराण में जीबंधर की भी एक सुन्दर कथा प्राती है। जब श्रीतायों न उस कथा को मुना तो रामी श्रोताओं ने एवं विशेषतः कालाडेहरा के निवासी श्री चतुरभुज अग्रवाल ने कवि से निवेदन किया कि देव भाषा अर्थात् संस्कृत तो अत्यधिक कठिन है । उसका स्वाध्याय तो पडित लोग ही व.र सकते हैं, लेकिन सामान्य श्रावकों के लिये शक्ति के बाहर की बात हैं। इसलिय यदि इस काम को हिन्दी में रचना हो जावे तो सभी सरलता से समझ सकेंगे । इसी प्रकार कवि के प्रमग्न मित्र पृथ्वीराज का भी यही प्राग्रह था। सागवाड़ निवामी हुमह जातीय श्रावक सेठ वेलजी का प्रायह भी विशेष था। इन लोगों के ग्राग्रह को टालना स्वयं कवि के लिए भी संभव नहीं था। अतएव कवि का अन्त में भाषा में जीवन्धर चरित को बार करना दी था और पुत्र १०५ की पाढ़ शुक्ला वितीया की शुभवेला में इस गाथ की समान्ति कर दी गई ।
'जीवंबर चरित' एका प्रबन्ध काव्य है। इसमें प्रबन्ध काव्योचित मभी गुण मिलते हैं। सारा काव्य अध्यायों में विभक्त है। जिनकी समस्या पांच है। इन अध्यायों में जिस प्रकार का वर्णन मिलता है, उसका संक्षिप्त परिचय अध्याय की पुष्पिका में दिया गया है जिससे इस अध्याय का पूरा चित्र सामने प्रा जाता है। इन अध्यायों में कवि ने जीवन्धर चरित को अपनी काञ्च प्रति'मा द्वारा सरस, सुबंध, एवं सरल बनाने का प्रयास किया है। कदि ने अपने काय के परम्परागत कथानक में यद्यपि कोई विशेष परिवर्तन मही किया है फिर भी कुछ नवीन उभावनात्रों की मृष्टि अवश्य हुई है। समूचा काव्य एक इतिवृतसा लगता है । जिसमें जीवन्धर के विभिन्न पक्षी की उद्. भावना हुई है। कथा वस्तु का पूर्णतः निर्वाह हुया है। वह पाठको को कभी रुलाती तो कभी हंसाती हुई धागे ले चलती है। वास्तव मे जीवघर का चरित क्या है-मानों उस महापुरुष की कहानी है, जिसने जीवन में भी हार नहीं मानी तथा जिसने कभी अम्पायी का पक्ष नहीं लिया । वह र मनुष्य की कहानी है। जिसे जीवन में कुछ कर दिखलाने की तान इच्छा है। वह एक ऐसे पुण्यात्मा की कहानी है। जिसने जीवन में सब कुछ पाक। भी उसे निस्सार जानकर छोड़ दिया तथा अन्त में तपस्वी जीवन को प्रायर कर निर्धारण की प्राप्ति की।