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________________ प्रस्तावना ४१ कि संवत् १८६१ में जयपुर नगर में जो विशाल प्रतिष्ठा समारोह हुमा या वह भट्टारक सुखेन्द्रकीति के निर्देशन में सम्पन्न हुप्रा तथा इस समारोह को प्रतिष्ठा कराने वाले थे। दीवान बारचन्द के सुपुत्र सपही रायचन्द । दोवान बालचन्द टोडरमल जो के प्रगमकों मे से थे एवं तेरहपंच की प्रोट उनका विशेष झुकाव था। महाकवि की अब तक १८ रचनात्रों की म्बोज की जा चुकी है। इन रचनात्रों को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं १. मौलिक रचनायें २, अनुदित रवनायें ३. हा टीकाये मौलिक रचनामों में हमने उन रचनायों को लिया है जिन्हें पवि ने पूर्व प्राचार्यों के ग्रन्थों पर प्राधारित होने पर भी स्वतन्त्र रूप से निबद्ध किया है तथा जिनमें अपना मौलिक चिन्तन दिया है । इसके अतिरिक्त इस श्रेणी में वे रचनायें भी सम्मिलित हैं जिनमें कवि ने अपने सर्वथा मोलिक विचार लिखे हैं। विवेक क्लिास एवं अध्यात्म बारहखडी ऐसी ही कृतियों में है । कवि की मौलिक रचनायें निम्न प्रकार हैं १. प्रपनक्रियाकोश २. जीबंधर चरित ३. अध्यात्मबारहखडी ४. विवेक विलास ५. थणिक चरित ६. श्रीपाल चरित ७. चौबीम दण्डक ८, सिद्ध पूजाष्टक इसके पश्चात् वे रचनायें रखी गयी हैं जो भाषा पनिका के रूप में लिखी गयी हैं जिनमें कवि ने पूर्वाचार्यों की रचनामों का हिन्दी गद्य में वचनिका के रूप में अर्थ किया है और अपनो अोर से विशेष घटाया बढ़ाया नहीं है। लेकिन कभि ने जिस कला के साथ उनकी भाषा टीका लिखी है ये ऐसी लगने लगी है जैसे वे मानों कवि की पूर्णत: मौलिक रचनायें हैं। कवि ने इनको जिस धारा प्रवाह में लिया है वहै उसकी स्वयं की कला है। ऐसी रचनावों में निम्न रचनायें प्राती हैं १. पुण्यात वकथाकोश - -
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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