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प्रस्तावना
लड़के बालकन कून्याय ज्याकरण गणित शास्त्र पढ़ाते है । और सो-पचास भाई या बायर्या चर्चा व्याकरण का प्रध्य यन करे है।"
संवत् १८२१ में जयपुर में 'इन्द्रवज पूजा महोत्मब' का प्रायोजन विशाल रूप में हुआ था। भाई रायमल्ल ने अपनी पत्रिका में इनका जिम सुन्दर ढंग से वर्णन किया है उससे पता चलता है कि इस महोत्सव में देश के विमा भागों से हजारों की संख्या में स्त्री पुरुष सम्मिलित हुए थे। जयपुर दरबार की ओर से इस प्रायोजन को सफल बनाने के लिए पूरी सुविधाए प्रदान की गयी थी। भाई रायमल्ल ने लिखा है कि "ए उछव फेरि ई पर्याय मैं देखणा दुर्लभ है। ए कार्य दरबार की प्रामा सू हुवा है पोर ए हुकम हुवा है जो पाक पूजाजी के अथि जो वस्तु चाहिजे सो ही दरबार सू ले जाबो । .........."पर दोन्यू दिवान रतनचन्द वा बालचन्द या कार्य विष प्रमेश्वरी है" ।
लेकिन इतना होने पर भी बीस पंय अाम्नाय वालों का प्रभाव कम नहीं हुआ था। महापंडित टोडरमल जी के समय में भट्टारक क्षेमेन्द्रकीति एवं भट्टारक सुरेन्द्रकीति भट्टारक पट्ट पर विराजमान थे। पं. टोडरमलजी के होते हुए इन दोनों भट्टारकों का संवत् १८१५ एवं संवत् १८२२ में जयपुर में ही पट्टाभिषेक किया गया और जयपुर नगर को इन्होंने अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया। एक अोर संवत् १८३१ में जयपुर नगर में टोडरमल जी के समर्थकों की योर से विशाल इन्द्रध्वज पूजन का प्रायोजन हुना तो दूसरी मोर से संवत् १८२६ में सवाई माधोपुर में विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठया समारोह हुमा जिसका भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति ने संचालन किया था 1 इस विशाल प्रायोजन में हजारों मूर्तियों की प्रतिष्ठा की गयी और उन्हें राजस्थान के प्राय: प्रत्येक गांव के अंन मन्दिर में स्थापित की गयी। यह प्रतिष्ठा संगही नन्दलाल ने करायी थी और इसमें लाखों रुपया व्यय करके मट्टारकों के प्रभाव को पुनः स्थापित किया गया। महापं हित टोडरमल जी के बलिदान के कुछ समय पश्चात् ही उनके विरोधियों की ओर से ऐसा विशाल प्रायोजन से ऐमा लगने लगा जैसे मानों कोई विशेष घटना ही नहीं घटी हो। जिस प्रकार महापंडित टोडरमल ने सिद्धान्त अन्यों की भाषानुवाद करके अपनी विचारधारा के प्रचार में वृद्धि की उसी प्रकार बीस पंथ के फट्टर समर्थक एवं भट्टारक परम्पग के प्रशंसक पंडित बखतराम साह ने संवत् १८२१ में अपने "मिथ्यात्व खंडन" ग्रन्थ में तेरहपंथ की कड़ी प्रालोचना की तथा संवत् १८२७ में बुद्धि विलास