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प्रस्तावना
सांगानेर में भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति भट्टारक पट्ट पर बैठे। कवि बखराम मह ने अपने "बुद्धिविलास" में इसका निम्न प्रकार वर्शन किया है-
नरेंद्रकीरति नाम, पट इक सांगानेर में ।
भये महामुन धाम, सोलहसँ इक्यारणये ।। ६६६ ।।
३.५
भ० नरेन्द्रकीति का देश के विभिन्न भागों में बड़ा भागे प्रभाव था । राजस्थान, मालवा, गेवाड़, महाराष्ट्र एवं देहली आदि में इनके रहते थे और जब वे जाते तो उनका खूब स्वागत होता था । तत्कालीन कितने ही विद्वान इनके शिष्य एवं प्रशंग थे । अनेक स्तोत्रों की हिन्दी गद्य में टीका करने वाले खपराज इन्हीं के शिष्य थे। संवत् १७१७ में इन्होंने अपनी संस्कृत मंजरी की प्रति भेट की थी। इसी तरह टोडारायसिंह के प्रसिद्ध कव पंडित जगन्नाथ इन्हीं के शिष्य थे। उनके समय में टोडारायसिंह में संस्कृत ग्रन्थों के पठन पाठन का अच्छा प्रचार या अष्टसही एवं प्रमानिक जैसे न्याय ग्रन्थों का लेखन, प्रवचन एवं पाठन होता था ।
लेकिन इन्हीं भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति के समय में दिगम्बर समाज के प्रसिद्ध तेरापंथ का प्रभाव बढ़ने लगा जिसने तत्कालीन समाज में व्याप्त शिथिलाचार का विरोध होने लगा । बखतराम साह ने अपने मिथ्यात्वखंडन (मं० १८२१ । में इसका निम्न प्रकार उल्लेख किया है
भट्टारक आरि के नरेन्द्रकोरति नाम |
यह कुपंथ तिनकै समै नयो चल्यो अब धाम ||
लेकिन संवत् १८२७ में ममाप्त होने वाले वुद्धि किलाग में इन्होंने हाथ का उदय संवत् १६८३ में माना है ।
इनही गछ मैं नीकस्यो, नूतन तेरह पंथ । सौलह से वीयासिये सो सब जग जानंत ।। ६२३ ।।
इस प्रकार लगता है खतराम स्वयं भी इस पंथ के उदय के सम्बन्ध में एक मत नहीं है। लेकिन कुछ भी हो भ० नरेन्द्रकीति के समय में
तं काफी जोर पकड़ लिया था । इन्हीं के समय संगानेर में अमरा भीमा हुए जो अपार सम्पत्ति के स्वामी थे। जिन्हें अपनी सम्पत्ति पर काफी गर्व था। एक वार जिनवानी का अविनय करने के कारण इन्हें मन्दिर से निकाल दिया गया