SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व महाराज का मन्दिर, खानियों का राणाजी का मन्दिर आदि के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। इनमें कितने ही मन्दिरों में विशाल शास्त्र भण्डार हैं जिनमें प्राकृत, अपभ्रंश संस्कृत एवं हिन्दी की प्राचीनतम पाण्डुलिपियां हैं जिनकी सख्मा २५ हजार से कम नहीं है और जो राष्ट्र के प्रमुल्य संपत्ति है तथा समूचे राजस्थान को जिन पर गर्व है । सामाजिक स्थिति महाकवि दौलतराम के समय मे राजनैतिक अस्थिरता के समान देश की सामाजिक स्थिति भी छात्र डोल ही भी । मुगल सम्राट् श्रीरंगजेत्र के अत्याचारों के कारण समस्त हिन्दू समाज वस्त, पीड़ित एवं भयभीत था । जैन समाज भी मुगलों उसीड़न से बच नहीं सका था । मध्यप्रदेश में सेकड़ों जैन मन्दिरों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया था और संस्कृति एव साहित्य की रक्षा कैसे हो यह प्रमुख समस्या सबके सामने बनी हुई थी । जैन समाज विभिन्न वर्गों में विभाजित था। १८वीं शताब्दी तक भट्टारकों का जबरदस्त प्रभाव था। शासन एवं जनता दोनों में ही उनका पूर्ण प्रभाव था । देहली पट्ट के भट्टारकों का जिनमें भट्टारक शुभचन्द्र, जिनचन्द्र एवं प्रभाचंद्र के नाम उल्लेखनीय है, उत्तरी भारत में अपना जबरदस्त प्रभाव स्थापित कर रखा था। इनकी विद्वत्ता एवं त्याग में जनता पर जादू जंसा कार्य किया था। इनके प्रभाव के कारण अनेक मन्दिरों का निर्माण हुआ एवं बड़ी-बड़ी प्रतिष्ठायें हुई। लेकिन फिर भी देहली के बादशाहू सिकन्दर लोदी (१२=६१४१७ ई०) की कट्टरता एवं असहिष्ण ुता के कारण देहली से भट्टारक पट्ट faaौड़ स्थानान्तरित किया गया और मंडलाचार्य धर्मचन्द्र (सन् १५२४) चित्तौड़ पट्ट पर आसीन हुए। इनके कुछ वर्षों पश्चात् ही भट्टारक रत्नकीनि ने नागौर में भट्टारक गादी स्थापित की। मुगलों के चित्तौड़ पर भी बराबर आक्रमण होते रहने के कारण धर्मचन्द्र के शिष्य ललितकीति ने (संवत् १६०३) चित्तौड़ में अपनी गादी स्थानान्तरित की और राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र में अपना जवरदस्त प्रभाव स्थापित किया । ३६ भट्टारक ललितकीति द्वारा भट्टारक गादी स्थानान्तरित किये जाने के पश्चात् राजस्थान के इस क्षेत्र में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक जागरण पुनः प्रारंभ हुआ । इस समय श्रामेर के राज्य में प्राय: शान्ति थी और मुगलों के आक्रमण का कोई डर नहीं था। भट्टारक ललित कीर्ति के पश्चात् भट्टारक चन्द्रकीर्ति एवं भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति हुए जिन्होंने अपनी विद्वता तथा त्याग के बल पर सारे राजस्थान में अपना प्रभाव स्थापित किया । संवत् १६६१ मं
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy