________________
प्रस्तावना
चारचौ दिसी रच्यो उतंग कोट, ता परि कंगरनि की वनी जोद। तिह तलि चौडी खाई बनाय प्रोडी मनु सरिता चली जाय ।। ६६ ।। दरवाजे मचे बने गोरख पौरिया बैठि तिह करत जोख । चौपरि के कोन्हे हैं वाजार विचि वीचि बनाए चौक चार ।। १००॥ स्याऐ नहेरि बाजार मांहि । विचि मैं बंवे गहरे रखाहि । चौकनि मैं कुड रचे गंभीर । जग पीवत तिनकौं मिष्ट नीर ।। १०१।। हाटिन के विचि रस्ता रखाय । दीन्हें. ते सूधे चले जाय । वहु वने हवैली कूप वाग। सुदर तिनु लखि मन लगत लाग ।। १०२॥ धनवान जु व्यापारी कितेक वहु देस सुदेसनि तें पाए अनेक ते करत विराज प्रति निसंक होय
परदेस सुदेसाहि जात कोय ।।१०३।। नगर में ज्योतिष यंत्रालय का निर्माण कराया गया जिससे ग्रहों की साल का अच्छी तरह से पता लगने लगा और उसी के आधार पर 'जयविनोद' नाम से तिथि पत्र निकलने लगा। देश के कोने-कोने से पंडित आने लगे और साहित्य, तर्क एवं न्याय पर विविध चर्चाय होने लगी । कारीगरों को बसाया गया जिससे नगर का ब्यापार बढ़ने लगा । बाजार में समुदायों में टुप्ताने थी जिसमें ग्राहकों को ठीक भावों पर वस्तुयें मिलती रहती थी । पहाड़ों के नीचे ही तालकटोरा था जिसका दूसरा नाम जयसागर भी था। इसमें