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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जयपुर नगर की स्थापना
महाराजा सवाई जयसिंह केवल योद्धा एवं राजनीतिज्ञ ही नहीं थे किन्तु नगर निर्माता भी थे । सन् १७२५ में उन्होंने 'जयनिवास' नामक महल की नीव रखी और नवम्बर १७२७ में महल के चारों प्रार एक नवीन नगर का निर्माण प्रारम्भ करा दिया । पहिले इस नगर का नाम जयनगर रखा गया। बाद में सवाई जयपुर के नाम से प्रसिद्ध हो गया और अब केवल जयपुर के नाम से विख्यात है। इस नगर के निर्माण का सबसे अधिक श्रेय विद्याधर नाम के व्यक्ति को है, जिसे टाड ने जैन लिना था लेकिन अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार वह बंगाली था । नगर निर्माण के पश्चात् उसका महागजा सवाई जयसिंह द्वारा स्खूब मम्मानित किया गया। उसे रेवन्यू मिनिस्टर बनाया गया। उसके नाम से एक विद्याधर का रास्ता एवं विद्याधर का वाम बनाया गया तथा इसके अतिरिक्त पांच हजार वी जागीर भी उसे दी गयी।
जयपुर नगर तीन ओर पहाड़ियों से घिरा हुया है। इसके उत्तर की और आमेर है जो पहिले राज्य की राजधानी था। लघा दक्षिण की ओर सांगानेर है जो जयपुर वसने से पूर्व एक वैभवशाली नगर था। नगर के चारों मोर परकोटा बनाया गया था। उसके नीचे एक गहरी खाई थी जो नदी के समान' लगती श्री। ऊचे ऊचे दरवाजे थे। चौपड़ के समान बाजार थे तथा जिनके बीच बीच में चौक बनाये गये थे। बाजार की सड़क के एक और नहर थी जिसे चौपड़ पर बने हुए कुण्डों को पानी मिलता था और जयपुर के नागरिक इनका पानी पीते थे। बाजार एवं गलियों को एकदम सीधा बनाया गया था और फिर उसी के अनुसार महल एवं मकान बनाये गये थे । जयपुर बसने के पश्चात् नगर में बसने के लिये राज्य के बाहर से भी घनादध ध्यापारियों को बुलाया गया था, जिससे नगर का व्यापार खूब बढ़ गया था । कविवर वखतराम ने अपने बुद्धि विलास में जयपुर नगर की उत्पत्ति का बहुत ही सुन्दर एव विस्तृत वर्णन किया है। वगान का प्रारम्भिक अश निम्न प्रकार हैसोहै अंबावति की दक्षिण दिसि सांगानेरि,
दोऊ वीचि सहर अनीपम बगायो है । नांम ताको धरौ हैं स्वाई जयपुर,
मानों सुरनि ही मिलि सुरपुर सौं रनायीं है ॥६८