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________________ प्रस्तावना २६ इस घटना के १२ वर्ष तक राज्य में पूर्ण शान्ति रही । जैन धर्मावलम्बियों ने पुनः अपने मन्दिरों का निर्माण करा लिया। रथयात्रा होने लगी तथा मन्दिरों में ठाट बाट से पूजा एवं उत्सव होने लगे । संवन् १८२१ में जयपुर नगर में इन्द्रध्वज पूजन का विशाल प्रायोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न स्थानों से हजारों स्त्री पुरुपों ने भाग लिया। इस आयोजन में जनों ने अपने वैभव का खूध प्रदर्शन किया। जयपुर के महाराजा ने मी एक भादेश जारी किया था कि "पूजा के अधि जो वस्तु चाहिये सो ही दरबार सू ले जावो"। लेकिन इस विशाल आयोजन का एक वर्ग विशेष पर प्रध्या प्रभाव नहीं पड़ा और उन्होंने कुछ समय पश्चात् ही एक शिव मुर्ति तोड़ने का जैनों पर प्रारोप लगाया । महाराजा ने भी अपनी व्यस्तता के कारण घटना को विशेष प्रांत नहीं की। भने म अापकों पोट कर लिया गया । अन्त में तत्कालिन महापंटित टोडरमल के ऊपर सारा दोषारोपरण लगाया गया तथा महाराजा के प्रादेश से उन्हें मृत्यु दण्ड दिया गया और मारने के पश्चात् उनकी लाम को गहमी के ढेर में डाल दिया गया। टोडरमल उस समय क्रान्तिकारी समाज सुधारक एवं प्रबल पंडित थे। समाज के ऊपर उनका पूर्ण प्रभाव था । महाराजा के मातंक के कारण सारा जैन समाज कोई विरोष नहीं कर सका। फुनि मत बरस ड्योढ़ मै थप्यो, मिलि सवहीं फिरि अरहंत जप्यो । लिये देहुरा फेरि चिनाय, दं प्रकोड प्रतिमां पधराय ॥१३०१।। नाच कूदन फिरि बहु लगे. धर्म माझि फिरि अधिक पगे। पूजत फुनि हाथी सुखपाल, प्रभु चढाय रथ नचत दिसाल ।३१३०२।। तब ब्राह्मनु मतो यह कियो, सिव उठान को टौंना दियो । तामै सबै श्रावकी कंद, करिके इंड किये नृप कैद ।।१३०३॥ यक तेरह पथिनु मैं ध्रमी, हो तो महा जोग्य साहिमी । कहे खलनि के नृप रि.सि ताहि, हति के धरधो असुचि थल बाहि । १३०४१ टोडरमल जी के बलिदान के पश्चात् राज्य में फिर शान्ति ही स्थापित हो गयी और फिर पूर्ववत मन्दिरों में पूजा पाठ, रथ यात्रा उत्सव विधान होने
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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