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________________ २८ महाकवि दौलतराम काराजीनामा तिन मनिल करने पर मजबूर किया जाने लगा तथा उनके मन्दिरों को तोड़ फोड़ दिया गया। राज्य के समस्त जैनों को इतना भातंकित कर दिया गया कि उनका दर्शन, स्वाध्याय एवं पूजापाठ भी बन्द हो गया। किसी मन्दिर को प्राधा और किसी को पूरा ही नष्ट कर दिया गया। या तो केवल भामेर का सावला जी का मन्दिर सुरक्षित रहा प्रथवा वे ही मन्दिर बच सके जिनकी रक्षा का पूरा प्रबन्ध था 1 किसी में जबरन शिव मूर्ति स्थापित कर दी गयी। इस प्रकार चारों ओर श्याम तिवारी के अत्याचार होने लगे। किसी से कोई उपाय नहीं बन सका 1 और न किसी साधु महारमा का जादू मंत्र ही काम कर सका । लेकिन जब श्याम तिवारी के अत्याचारों की वास्तविकता का महाराजा माधोसिंह को मालूम पड़ा तो उन्होंने उसे यथोचित दण्ड दिया और मध्याह्न में जयपुर नगर से निकलवा दिया। वह केवल घोवती एवं दुपट्टा सान ले जा सका। उस समय वह केवल अकेला था और उसके पीछे से लड़के हुरिया देते जाले थे । महाराजा ने उसका गुरूपद छीन लिया और जैसा उसने कार्य किया था वैसा ही उसको दण्ड दिया गया। सोरठा अंधावति मै ऐक, म्यांम प्रभू के देहरं। रही धर्म के टेक, बच्यो सु जान्यो चमतक्रत ।:१२६४।। चौपई कोए प्राधो कोऊ सारो, बच्यो जहां छत्री रखवारो। काहू मै सिवमूरति परि दो, अंसी मची स्याम की गरदी ।।१२६५।। १ संवत अट्ठारहसै गये, अपरि जके अठारह भये । तब इक भयो तिवाड़ी स्यांम, जिंभी अति पाखंड को धाम ।।१२८६ ।। स्वछ अधिक द्विज सब घाटि, दौरत ही साइन की हाटि । करि प्रयोग राजा बसि कियो, माधवेस नप गुर पद दियौ ।।१२६० ।। गलता बालानंद दै प्राधि, रहे झांकते बैठ वादि । सबको ताहि सिरोमनि कियो, फुनि वैसनू राज पद दियौ ।।१२६१।। लियौ आचमन पाव पखार, सोप्यौं ताहि राज सब भार । दिन कितेक बीते हैं जवें, महा उपद्रव कीनौं तवै ।।१२६१॥ हम भूप को लेकै चाहि, निम जिमाप देवल दिय ढाहि 1 अमल राज को जनी जहां, नांव न ले जिनमत को तहां ।। १२६२।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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