________________
प्रस्तावना
शासकों के कारण संवत् १८०० तक राज्य में शान्ति रही और राज्य की समी तरह से उन्नति होती रही। महाराजा सवाई जयसिंह के पश्चात् जयपुर की गद्दी पर महाराजा सवाई ईश्वरीसिंह (सन् १७४३-१७५०) सवाई माधोसिंह (सन् १७५०-६८) एवं सत्राई पृथ्वीसिंह (सन् १७६८-१७७८} बैठे। इन तीनों ही राजामों के शासनकाल में चारों प्रोर प्रशान्ति रही। तथा इन तीनों ही शासकों को लड़ाइयों से भी प्रकास नहीं मिला। यहां पर सुरक्षा के नाम जैसी कोई चीज ही नहीं रही। मराठों के अतिरिक्त स्वयं मुगल बादशाह भी इनके विरुद्ध हो गये थे और उन पर सदैव युद्ध की तसवार टंगी रहती थी । महाराजा ईश्वरीसिंह ने केवल सात वर्ष तक शासन किया और अन्त में मराठों के आक्रा में ययभीत रहर कसा पी लिया। इसके परमाद सवाई माधोसिंह गद्दी पर बैठे लेकिन सतरह वर्ष के शासन में उसे कितनी ही लड़ाइयां लड़नी पड़ी। मरहाटामों के बार बार के प्राक्रमग्गों में शासन व्यवस्था एक दम ढीली पड़ गयी थी और गज्य की सारी प्रामदनी फौजों पर ही खचं करनी पड़ती थी। इमलिये उस समय कला एवं साहित्य को कोई प्रोत्साहन नहीं मिला । इनके पश्चात् सवाई पृथ्वीसिंह शासन पर बैठे। लेकिन उस समय वे केवल पांच वर्ष के थे और ग्यारह वर्ष के पश्चात् ही उनका स्वर्गवास हो गया। इसलिये वे भी शासन को सशक्त बनाने की दिशा में कोई कार्य नहीं कर सके ।
महाराजा माधोसिंह एवं पृथ्वीमिह के शासनकाल में शासन पर मंत्रियों एवं पुरोहितों का अधिक प्रमुख रहा । संवत् १८१८ से १८२६ तक सारे राज्य में शवों एवं जैनों में साम्प्रदायिक झगड़े होते रहे । राज्य में शवों का प्रभुत्व होने के कारण बहुत से जैन मन्दिरों को नष्ट कर दिया गया तथा कितने ही मन्दिरों को शव मन्दिरों में परिवर्तित कर दिया गया। केवल -६ वर्ष में ही इस प्रकार के तीन बार उपद्रव हुए जिसमें धन सम्पत्ति की अपार क्षति हुई । इस सम्बन्ध में तत्कालीन कवि बखतराम साह ने अपने चुदि बिलास (संवत् १८२७) में इन घटनामों का निम्न प्रकार उल्लेख किया है--
संवत् ११८ में एक श्याम तिवाड़ी हुआ जिसने किसी प्रयोग से महाराजा माधोसिंह को अपने वश में कर लिया। महाराजा ने श्याम तिवाड़ी को सभी धर्म गुरुयों का प्रधान बना दिया और आचमन (संकल्प) करके राज्य का पूग भार ही उसे सौंप दिया। गलता के बालानन्द प्रादि जो धर्मगुरु थे वे सभी देखते रहे । इस घटना के कुछ दिनों पश्चात् ही सारे राज्य में उत्पात होने लगे। महाराजा से मनमाना आदेश लेकर जनों को रात्रि भोजन