________________
२६
महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
चतुर्घ साहिब राम थे। इन चारों ही पुत्रों के भी अच्छी संख्या में संतान थी। थानसिंह मोहनराम के पुत्र थे। इनका जन्म सांगानेर में हुआ था। अयपुर एवं सांगानेर में जब साम्प्रदायिक उपद्रम हुये तब कवि भरतपुर चले गये थे । लेकिन वहां कुछ समय तक रहने के बाद वे फिर महाराजा माधवसिंह के दरबार में प्रागमे और वहीं पर ध्यापार करने लगे। यहां रहते हुये उन्होंने सुबुद्धि प्रकाश की रचना की। परन्तु इनके पिता वापिस जमपुर नहीं पाये और करौली में रहकर ही व्यापार मादि करने लगे । थानसिंह अपने समय के प्रगतिशील कवि थे तथा साहित्य सेवा में सदैव संलग्न रहते थे।
राजनैतिक स्थिति
दौलतराम अपने ८० वर्ष के जीवन में बसना, पागरा, उदयपुर एवं जयपुर रहे। अागरा के अतिरिक्त इनका अधिक सम्पर्क जयपुर के महाराजानों से रहा लेकिन कवि ने अपनी रचनामों में जयपुर के महाराजारों एवं उदयपुर के महाराणा जगतसिंह के नामोल्लेख के अतिरिक्त सरकालीन राजनैतिक स्थिति अथवा शासन का कोई वन नहीं किया। कवि प्रागरा भी काफी समय तक रहे लेकिन मुगल शासन के बारे में भी वे मौन ही रहे । इससे पता चलता है कि कचि की राजनीति अथवा तत्कालीन शासन के बारे में लिखने में कोई रुचि नहीं थी। इसके अतिरिक्त अमपुर महाराजा के उच्च पदाधिकारी होने के कारण उन्होंने अपने जीवन को साहित्य रचना तक ही सीमित रखा और अन्य प्रपच्चों से दूर रहे।
कवि ने जब पुवावस्था में पदार्पण किया था उस समय देहली पर मुगल बादशाहों का शासन था जो अपने ह्रास की भोर तीय गति से बढ़ रहा था। सम्राट औरंजेव के पश्चाई भारतीय शासन की बागडोर मजबूत हाथों में नहीं रही थी 1 उसके उत्तराधिकारियों को प्रापस में लड़ने से ही अवकाश नहीं मिलता था, इसके अतिरिक्त वे अत्यधिक बिलासी, आलसी एवं अयोग्य भी थे। ना उनमें अकबर जंसी दूरदशिला थी और न औरंगजेब जैसी राजनैतिक चतुरसा । फरूनसियर एवं मुहम्मदशाह जसे मुगल सम्राटों का शासन एकदम दीला तथा निकम्मा था तथा केन्द्रीय शासन नाम मात्र का रह गया था। कवि ने मुगल साम्राज्य का पूरा पतन अपनी मांखों से देखा होगा ।
लेकिन कवि के समय में राजस्थान के शासकगण सणक्त बन गये थे। जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह (सन १६६६-१७४३) जैसे योग्य एवं दूरदर्शी