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________________ प्रस्तावना जयचन्द का पुत्र नन्दलाल छाबड़ा भी अपने पिता के समान ही साहित्य प्रेमी था । वह अनेक शास्त्रों का ज्ञाता या तथा अपने पिता को साहित्य रचना में योग दिया करता था। जयचन्द जी ने एक स्थान पर अपने पुत्र की निम्न प्रकार प्रसंशा की-- नन्दलाल मेरा सुत गुनी, बालपने ते विद्या गुनी । पंडित भयौ बड़ी परवीन, ताहूनै यह प्रेरणा कीन ।। जयचन्द जी के पश्चात् होने वाले सभी कवियों ने इनकी मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है। थानसिंह : भानसिंह महाऋषि दौलतराम के उत्तरकालीन कवि थे। इनके द्वारा रचित "सुबुद्धि प्रकाश" एवं "यान विलास" उल्लेखनीय रचनाए है । 'मुबुद्धि प्रकाश' सुभाषित रचना है, जिसकी एक पाण्डुलिपि जयपुर के बधीचन्द जी के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। रचना काफी अच्छी है । तथा उसमें १४६ पत्र हैं। इसका रचनाकाल संवत् १८४७ है। इसी तरह 'पान विलास कवि की रचनाओं को संग्रहात्मक कृति है। कधि बहुत ही स्पष्टवादी एवं निडर थे लथा तथ्यों को रखने में कभी भी नहीं हिसकते थे। जयपुर में महाराजा माधोसिंह के समय में जो साम्प्रदायिक उपद्रव हुये थे, उनका सुबुद्धि प्रकाश की प्रशस्ति में जो वर्णन किया है, वह उनकी निर्भयता का सूचक है माधव प्राग सिव धरमो मुखियौ भयो । जैन्यासों करि द्रोह वच में ले लियो ।। देव धर्म गुरु धत को विनय विगारियो। कीयो नांहि विचारि पाप विस्तारियौ ।।१२।। दोहा भूप प्ररथ समझ्यो नहीं, मंत्री के वसी होय । डंड सहर मैं नाखियो, दुखी भये सब लोय ।।६३।। विविध भांति घन घटि गयो, पायौ बहुत कलेम । दुखी होय पुर को तजो, तब ताको परदेस [१६४।। कषि खण्डेलवाल जाति में ठोल्या गोत्र के थे । हेमराज इनके दादा थे । हेमराज के बड़े पुत्र मलूकचन्य, द्वितीय मोहन राम, सृतीय लूणकरण तथा
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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