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महाकवि दौलतराम कासलील-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
उत्पत्ति और ऋषभजो की उत्पत्ति और क्षत्रियादिक के वंश का वर्णन । फिर हरिगंश की उत्पत्ति । भौर हरिवंश विष मुनिसुव्रतनाथ की उत्पत्ति ।।७७॥ फिर दक्षप्रजापतिका धरित्र । फिर राजा वसु का वृतांत । फिर अंधकवृष्टि का दीक्षा। और समुद्रबिजय का राज। और बमुदेव का सौभाग्य वर्णन और उपाय कर वसुदेव का घर से विदेश को निकसना ॥६६॥ और वसुदेव के राणी सीमा और बिजयसेना का लाभ फिर बनगज का वश करणा और विद्याधर की पुत्री स्यामा का संयोग ।।८०॥ फिर वसुदेव को अगारक विद्याधर का ले उड़ना और चम्पापुरी विधे डारना और गंधर्नसेना का लाम विष्णु कुमार मुनि का चरित्र फिर चारुदत सेठी की कथा और उसको मुनि का मन और दानेन के नीलयमारणी का लाभ और सोमथी का लाभ १८२॥ और देवकी की उत्पत्ति का कथन, घऔर राजा सौदास का कथन ! मौर बसुदेव के कपिला राजकन्या का लाभ प्रौर पथावती का लाभ और राणी पारुहासिनी और रत्नवती की प्राप्ति और राजा सोमदत्त की पुत्री वेगवती का संगम और मदनवेगा का लाभ बालचन्द्रका अवलोकन तथा प्रियंगुसुन्दरी का लाभ, और बंधमती का समागम, प्रभावती की प्राप्ति और रोहिणी का स्वयंवर, उसके स्वयंवर विषे संग्राम और संग्राम विषे वसुदेव की जीत, और समुद्रबिजयादिक बड़े भाइयों में मिलाप ।।८६।। और अलभद्र की उत्पत्ति कंस का व्याख्यान और जरासिंधु को प्राज्ञा से राजा सिंहरण का बंधन पा८७॥ और कंस को जरासिंध की पुत्री जीनंजशाका लाभ और राज्य की प्राप्ति उग्रसेन पिता का नधन फिर वसुदेव से देवकी का विवाह 1|| भिर कंस का बड़ा भाई जो प्रतिमुक्त उसके प्रादेश कर कंस की प्राकुलता का होना जो देवकी के पुत्र कर मेरा मरण है फिर पसुदेव सो प्रार्थना करना जो देवकी की प्रसुति हमारे घर होय |६सो वसुदेव प्रमाण करी फिर वसुदेव का प्रतिमुक्त मुनि से प्रश्न, और देवकी अष्ट पुत्रों के पूर्वाभव का श्रवन और पाप का नाश करण हारा श्री नेमिनाथ के परित्र का श्रवण 118011 फिर श्रीकृष्णा की उत्पत्ति और गोकुल विषे बाल लीला और बलदेव के उपदेश से सभा शास्त्रों का ग्रहण १९|| फिर बसुदेव के धनुष रत्न का प्रारोपण और यमुना विष नागकुमार का जीतना फिर हाथी को जीतना और चाणूरमल्ल का निपात, और कंस का विध्वंस ।।१२।। और उग्रसेन को राज मौर हरि का सत्यभामासौं पाणिग्रहण और तासे अधिक प्रीति ।।९३३ और जीबंज शा का जरासंध पं जाना और विलाप करना जरासंध का यादबों पर रोष होना और बड़ी सेना भेजना रण विषे काल यथन का पराभव अपराजित का हरि के हाथ कर रण विर्षे मरण। भोर यादवों को परम हर्ष का उप