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________________ हरिवंश पुरास २८३ अपराजित ३, गोवर्धन ४, भद्रबाहु ५. ये पांच चतुर्दश पूर्व के धारक यतकेवली भए । और विशाखाचार्य १, घोस्टलक्ष २, त्रिय ३, जय ४, नाग ५, सिद्धार्ग ६, धृतिषेण ७, विजय ८, बुद्धिस t, गंगदेव १०, धर्मसेन ११. ये ग्यारह अंग प्रौर दश पूर्वके पाठी भए ||६३।। और नक्षत्र १. यशः पाल २, पाण्डु ३, ध्वसेन ४, और कम्पाचार्य ५ ये पांच मुनि ग्यारह अंग के पाठी भर : प्रो हुगा, याना, गशीन हुँ , जाचार्य ४, ये चार मुनि एक प्राचारांग के धारक भये ।।६।। ये पूर्वाचार्य और भी जो प्राचार्य उनकर विस्तार यह एक देश प्रागम उसका एक देश व्याख्यान फरिये है ।।६६।। यह हरिवंश पुराण अपूर्ण कहिये पाश्वर्यकारी अर्था थकी तो बहुत है शब्द थकी अल्प है इससे शास्त्र के विस्तार के भय कर अल्परूप सारवस्तु का संग्रह करिए है ॥६७|| मन पचन कायको शुद्धता को धार जे भव्य जीव सदा जैन सूत्र का अभ्यास करें उनको वक्तापने कर और श्रोतापने कर यह पुराण का अर्थ कल्याण का कार्ता होय है। वाह्य मोर प्राभ्यन्तर के भेद कर जो तप की विधि है सो दो प्रकार की है उस विषे स्वाध्याय नामा परम तप है क्योंकि जो यह स्वाध्याय नामा तप है सो अजानता को निवारे है ।।६६।। इससे परम पुरुषार्थ का करण हारा यह पुगण का अर्थ इस देश काल के जानन हारे पण्डित उन कर व्याख्यान करणे योग्य है। और जो भत्सर भाव रहित थद्धावान पुरुष हैं उन कर सुननं पोग्य है, मत्सर कहिये दपक व्याख्यान करणे योग्य जो भाव मो सत्पुरुषों को त्याज्य है ॥७॥ प्रागे इस पुराण विषे प्राट बड़े अधिकार हैं सो अनुकम से कहेंग इन विषे प्रश्रम ही सोक्यका कथन ॥ १।। और राजाम्रो के वश की उत्पत्ति ।। २ ।। और हरिवंश का निरूपण ।। ३ ।। और वसुदेव का चरित्र ॥४॥ और नेमिनाथका चरित्र ।। ५ ।। और यादवों का द्वारिका विषे निवास ॥६॥ और नारायण प्रतिनारायण के युद्ध का वर्णन ॥७ ।। और नेमिनाथ के निर्वाण का निरूपण ।। || यह माठ महा अधिकार पूर्वाचार्यों ने सूयों के अनुसार प्ररूप सो यह अवांतर अधिकारों कर शोभित है !!७३।। संग्रह कर विभाग कर वस्तु के विस्तार कर इस जिनशासन विषे उपदेश होय है इसलिमे अधिकारों के विभाग कहिए हैं ।,७४।। प्रथम ही कई मान जिनेश्वर का धर्म तीर्थ प्रवर्तन । फिर गरगधरादिक गणों की संख्या। फिर गजगृह विषे आगमन । और गौतम स्वामी से राजा नरिणक का प्रश्न । पौर क्षेत्र कहिए लोक्य । और काल कहिए षट्कास तिनका निरूपण । फिर कुलकरोंकी
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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