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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अथ ग्रन्थ की उत्पत्ति
अथानन्तर-मैं हरिवंश नाम जो पुराण महा मनोहर उसे प्रकट करता हूँ, कैसा है यह पुराण संसार विपे कल्पवृक्ष समान उत्कृष्ट है। कैसा है कल्पवृक्ष प्राँडी है जड़ जिसकी और कोसा है यह पुराण प्रति अगाध है। जड़ जिसकी महादृढ़ है । जिसकी जड़ जिनशासन है। और कल्पवृक्ष और पुराण दोनों पृथ्वी विषे प्रसिद्ध है और कल्पवृक्ष तो बहशाखा कहिये अनेक शाखा उन कर शोभित है और यह पुराग बहुशाखा कहिये अनेक कथा उन कर
गति है . को। न विस्तार का दाता है और यह पुराण महापवित्र पुण्य फल का दाता है पोर पाप पवित्र है और कल्पवृक्ष भी पवित्र है। यह हरिशंश पुराण थीनेमिनाथ के चरित कर महा निर्मल है ॥५१॥ जैसे छु मरिण कहिये सूर्य उसकी ज्योति कर प्रकाशे पदार्थ तिनको दीपक तथा मरिण तथा खद्योत कहिये (पटवीजना) तथा विजुली यह लघु वस्तु भी अपनी शक्ति प्रमाण मथायोग्य प्रकाश करे हैं ।।५।। सैसे बड़े पुरुष केवली श्रुतकेवली उनकर प्रकाशित जो यह पुराण उसके प्रकाशि मिषे अपनी शक्ति प्रमाण हम सारिखे अल्प बुद्धि भी प्रवों हैं, जैसे सूर्य के प्रकाशे पदार्थों को कहा दीपादिक न प्रकारों सैसे केवली श्रुतकेवली के भाषे पुराण को कहा हम सारिखेन प्रह अपनी शक्ति अनुसार निरूपण करें ।।५३।। द्रव्य प्रछन्न १ क्षेत्र छन्न २ कालप्रछन्न ३ भावप्रशन्न ४ । द्रव्यप्रष्ट्रान कहिये कालाणु ॥१।। पोर क्षेत्रप्रछन्न कहिवे, प्रालीकाकाश २ और कालप्रछन्न कहिले अनागत काल ३ और भाव प्रछन्न कहिये, प्रथं पर्यायझप षट्गुणी हानिवृद्धि ४ ऐसे जे अगम्य पदार्थ प्राचार्यरूप जो सूर्य उन्होंने किया है प्रकाश जिनका उनको सकुमारता कर युक्त जो यह मन सो स्थूल पदार्थों को कैसे लोक वा दृष्टि करने से देखें तैसे देखे हैं। द्रव्य क्षेत्रादिक के भेदों से पांच प्रकार के भेद हैं जिसका ऐसा यह पागम पुगरण पुरुषो का भाषा होने से प्रमाण है ।।५५॥ इस ग्रंथ के मूल कर्ता आप श्री तीर्थकर देव और उसर ग्रन्थ कर्ता गौतम नामा गसाधरदेव और उत्तरोत्तर प्रथका अनेक आचार्य वे सब ही सर्वज्ञदेव के अनुसार कथन करण हारे हमको प्रमाण हैं ।।५७|| उन केवली और पांच चतुर्दश पूर्वके धारी श्रूत केवली और ग्यारह अङ्ग दश पूर्वके पाठी ग्यारह और एकामश अङ्ग के धारक पांच और एक याचारांगके धारक चार और यह पांच प्रकार के मुनि पन्धम काल के आदि विष होते भए तिनमें धी बर्द्धमान के पीछे तीन फेवसी भए । इन्द्रभूत कहिये गौतम और सुधर्माचार्य और जम्बू स्वामी मतिम केवली भए। यह तीन तो केवली भए अौर विषा १, नन्दिमित्र २.