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________________ २८५ हरिवंश पुरा जना और किसी का भय नहीं ||३५|| फिर शिवदेवी के नेमिनाथ की उत्पत्ति जब गर्भ में भाये तब षोडश स्वप्न का देखना और पति से स्वप्न का फल पूछना, पति कही तुम्हारे श्रीनेमिनाथ पुत्र होंगे || ३६ || फिर भगवान का जन्म और सुमेरु विषे जन्माभिषेक फिर बाल कीड़ा और जिनराज का प्रताप और जरासंध का यादवों पर प्राक्रमण और यादवों का समुद्र की ओर गमन ||२७|| और मार्ग में देवसायों ने जो माया दिखाई उसकर जरासन्ध पीछे फिरना फिर श्री कृष्णा का समुद्र के तीर दाभ की सेज पर तिष्ठ सेसा करना ||१८|| और इन्द्र के वचन से गौतम नामा देवकर समुद्र का सो चना और कुबेर कर के द्वारिकापुरी का क्षणमात्र में रचना फिर रुक्मणि का विवाह और सत्यभामा के देदीप्यमान भानुकुमार का जन्म और रुक्मसी के प्रद्युम्न का जन्म और पूर्वला देरी जो धूमकेतु उस कर प्रद्युम्न का हरा ||१०० || विजयाद त्रिषे प्रद्युम्न की स्थिति काल संवर विद्याचर के मंदिर में और कृष्ण और रुक्मणी को प्रद्युम्न का खेद का निवारण प्रद्य ुम्न को षोडश लाभ की प्राप्ति और प्रज्ञप्ती और विद्या की प्राप्ति ||१| और मन का काल संबर से संग्राम और नारद के आग्रह कर माता पिता के काम और कुमार की उत्पत्तिको बालकौड़ा और पिता का पिता जो वसुदेव उसने प्रथम्न से प्रश्न किया ।। २ ।। और प्रद्युम्न ने अपने परिभ्रमण का सकल व्याख्यान किया। फिर यादवों के सकल कुमारों का वन, फिर यादवों की वार्ता के सुनने से जरामन्ध का कोप और यादवों के निकट दून पावना उसके आगमन में यादवों की सभा वि क्षोभ और दोनों सेनाओं का निकसना और विजयार्द्ध बिषै वसुदेव का श्रागमन, विद्याधरों का क्षोभ वसुदेव का पराक्रम ||४|| और प्रक्षोहिणी का प्रमाण थोर रथी अतिरथी अस्थी जे राजा महासर्थ तिनका कथन ॥ ५॥ और जरासंध ने चक्रव्यूह रची, उसके भेदित्रे अर्थ कृष्ण कटक विषे गरुड व्यूह की रचना और कृष्ण के गरुडवाहिनी विद्या की प्राप्ति और वलिदेव को सिवानी विद्या की प्राप्ति श्रोर नेमिनाथ के द्विमात भाई रथनेमि पोर कृष्ण के भाई अनावृष्टि और अर्जुन इन नक्रव्यूह भेया, और कृष्ण की सेना विषे मुख्य पांडव । और जरासन्ध की सेना विषे मुख्य धृतराष्ट्र के पुत्र जो कौरव उनमें परस्पर महायुद्ध फिर कृष्ण जरासन्ध का महायुद्ध ॥६॥ उस समय कृष्णा के हाथों में चक्र का श्रावना और जरासन्ध का वध, वसुदेव की विजय सो वसुदेव को विजयार्द्ध विषे विद्याचारी प्रगट भई और कृष्ण का कोटि शिला का उठावना और वसुदेव का विजयार्द्ध से प्रागमन और बलदेव वसुदेव की दिग्विजय और देवो पुनीत रत्न की प्राप्ति ||१०11 और दोनों
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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