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________________ महाकवि दौलतराम कासलीवास व्यक्तित्व एवं कृतित्व ये दोक भाई महावीर नगर के द्वारकी खिड़की की पोरसे निकसि दक्षिण दिशा का पंथ लिया। रात्रि के अन्त में दौड़कर सामंत लोक आय मिले। राघव के संग चलने की है अभिलाषा जिनके, दूरते राम लक्ष्मणकू' देख महा विनय के भरे असवारी छोड़ प्यादे आए, चरणारविंदकों नमस्कारकरि निकट प्राय वचनालाप करते भए । बहुत सेना आई पर जानकी की बहुत प्रशंसा करते भए जो याके प्रसाद हम राम लक्ष्मणको श्रम मिले। यह न होती तो ये धीरे धीरे न चलते पर हम कैसे पहुंचते ? ये दोऊ भाई पवन- समान शीघ्रगामी हैं पर यह सीता महासती हमारी माता है या समान प्रशंसा योग्य पृथ्वी विषै और नाहीं । वे दोऊ भाई नरोत्तम सीता की चाल प्रमाण मंद मंद दो कोस चाले । २७२ खेत निचिषं नाना प्रकार के ग्रनहरे हो रहे है अर सरोवरनिमें कमल फूल रहे हैं अर वृक्ष महारमरणीक दीख हैं । अनेक ग्राम नगरादि में ठौर ठोर भोजनादि सामग्री करि लोक पूजें हैं । अर बड़े बड़े राजा बड़ी फौजसे ग्राव मिले जेसे वर्षा काल में गंगा जमुना के प्रवाह विष अनेक नदियनि के प्रवाह श्राय मिलें । इक सामंत मार्ग के खेद करि इनका निश्चय जान प्राज्ञा पाय पीछे गए। अर कैइक लगाकर, कोइक भयकर, कैइक भक्ति कर लार प्यादे चले जाय है सो राम लक्ष्मण क्रीड़ा करते परियात्रा नामा अटवी थिये कैसी है अटवी ! नाहर पर हाथीनिके समूहनिकर भरी, महा भयानक वृधानिकर रात्रि समान अधिकार की भरी, जाके मध्य नदी है ताके तट श्राए, जहां भीलनिका निवास है, नाना प्रकार के मिठ फल हैं। आप वहां तिष्ट कर कैएक राजनिक विदा किया अर कंएक पीछे न फिरे, राम ने बहुत कहा तो भी सग हो चाले सो सकल नदीको महा भयानक देखते भए । कैसी है नदी ? पर्वतनिसों निकसती महानील है जल जाका, प्रचंड हैं लहर जायें, महा शब्दायमान अनेक जे ग्रह मगर तिनकर भरी होऊ ढांहां विदारती, कल्लोलनिके भयंकर उड़े हैं तीरके पक्षी जहां ऐसी नदी को देखकर सकल सामंत कासकर कंपायमान होय राम लक्ष्मगाकू कहते भए कि हे नाथ ! कृपाकर हमें भी पार उतार । हम सब भक्तिवंत हमसे प्रसन्न होवो हे माता जानकी लक्ष्मणसे कहो जो हमकू पार उतारें या भांति धांसू डारते अनेक नरपति नाना चेष्टा के करणारे नदी विषं पड़ने लगे। तत्र राम बोले, अहो अब तुम पाछे फिरो । यह वन महा भयानक है, हमारा तुम्हारा यहां लग ही संग हुता, पिताने भरतकु सबका स्वामी किया है सो तुम भक्तिकार तिनकू सेवढ़ | तब के कहते भए, हे नाथ! हमारे स्वामी तुम ही हो, महादयावान हो, हमपर प्रसन्न
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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