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पद्म-पुराण-भाषा
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जोडि नमस्कार किया, मुनि परम बांधव पाए, फूल गार हैं नेत्र जिनके, जा समय जो प्राप्ति होनी होय सो ये दोनों हाथ जोड़ विनती करती भई मुनिके चरणारबिंदकी ओर धरे हैं अश्रुपासहित स्थिर नेत्र जिनने। हे भगवान् ! हे कल्याणरूप हे उत्तम चेष्टा के धरणहारे । तिहारे पारीरमें कुशल है । कैसा है तिहारा देह ? सर्व तपनत आदि साधनेका मूल कारण है । हे गुग्गनि के सागर ! ऊपर ऊपर तपकी है वृद्धि जिनके, हे महाक्षमावान ! शांतभावके घारी ! मन इत्रियोंके जीतनहारे ! तिहारा जो विहार है सो जीवनिके कल्याणनिमित्त है, तुम सारिखे पुरुष सकल पुरुषनिकों कुशलके कारण हैं सो तिहारी कुशल कहा पूछनी परतु यह पूछने का प्राचार हैं सातै पूछी है, ऐसा कहि विनयते नम्रीभूत
म शरीर का हो म हो रही पर मनि के दर्शन मन भय रहित भई ।
प्रथानंतर मुनि अमृततुल्य परमशांति के वचन कहते भये-हे कल्याणरूपिरिण ! हे पुत्री ! हमारे कर्मानुसार सब कुशल है । ये सर्वही जीव अपने कर्मोका फल भोगवै है । देखो कर्मनिकी विचित्रता, यह राजा महेंद्र की पुत्री अपराध रहित कुटुम्बके लोगनिने कादी है । सो मुनि बढे ज्ञानी, बिना कहे भब वृतांत के जाननहारे तिनको नमस्कार कर बसंतमाला पद्धती भई-हे नाथ ! . कोन कारणले भरतार यासों बहुत दिन उदास रहे ? बहुरि कौन कारण अनुरागी भए अर यह महासुखयोग्य वन विर्ष कौन कारगत दुःखकों प्राप्त भई ? मंदभागी कौन याकै गर्भ में पाया जारि पाको जीवने कासंश भया । तदि स्वामी अमितिगति तीन ज्ञान के धारक सर्व वृत्तांत यथार्थ कहते भए । यही महा पुरुषों की वृत्ति है जो पराया उपकार करें। मुनि वसंतमाला सो कहै हैंहै पुषी ! याके गर्भविष उत्तम बालक पाया है, सो प्रथम तो ताके भव सुनि । बहरि जो पूर्व भव में पापका प्राचरण किया, जा कारणतं यह अंजना मे दुःखकों प्राप्त भई, सो सुन ।
[राम लक्ष्मण का वन गमन और भरत का राज्याभिषेक]
अयानंतर राम लक्ष्मण क्षरण एक निदा कर अर्धरात्रि के समय जब मनुख्य सोय रहे, लोकनिका शबद मिट गया पर प्रकार फैल गया ता समय भगवान नमस्कार कर बखतर पहिर धनुष बाण लेय सीताकू बीच में लेकर चाले, घर-घर दीपकनिका उद्योत होय रहा है, कामीजन अनेक चेष्टा कर हैं।
३२वा पर्व