________________
पग-पुराण-भाषा
२७३
होवो, हमको मत छोड़ह, तुम बिना यह प्रजा निराश्रय भई, प्राकुलतारूप कहो कौनकी शरण जाय ? तुम समान और कौन है ? घ्याघ्र सिंह पर गजेंद्र सादिकका भरा भयानक जो मह बन तामें तुम्हारे संग रहेंगे। तुम बिन हमारे स्वर्ग हू सुखकारी नाहीं। तुम कही पाछे जावो सो चित्त फिर नाहीं. कैसे जाहिं ? यह चित्त सबद्रियनिका प्रधिपति पाहीत कहिए, जो यह अद्भुत वस्तु में अनुराग करें । हमारे भोगनिकर घरकर तथा स्त्री कुटुम्बादिकर कहा ? तुम नररत्न हो, तुमको छोड़ कहां जाहिं ? हे प्रभो ! तुमने बालक्रीडा विर्ष हमसों फवहू वंचना न करी, अब अत्यंत निठुरताकू धारो हो। हमारा अपराध कहो । तिहोरे चरण रज कर परम वृद्धिकू प्राप्त भए, तुम तो भृत्यवत्सल हो । अहो माता जानकी ! अहो लक्ष्मण धीर ! हम शीण नवाय हाय जोड़ विनती कर, नाथकू हम पर प्रसन्न करहु । ये वचन सनिने कहे, तव सीता पर लक्ष्मण रामके चरणनिकी ओर निरख रहे । तब राम बोले-जाहु, यही उत्तर है । सुखसों रह्यिो, ऐसा कहकर दोनों धीर नदी के विष प्रवेश करते भए।
__श्रीराम सीता का कर गह सखसे नदीमें लेगए जैसे कमलिनी को दिग्गज ले जाय । वह असराल नदी राम लक्ष्मणके प्रभावकर नाभि-प्रमाण वहने लगी, दोऊ भाई जलविहार विर्ष प्रवीण क्रीड़ा करते चले गए। राम के हाव गहे ऐसी शोभै मानों साक्षत लक्ष्मी ही कमलदल में तिष्ठी है राम लक्ष्मण क्षणमात्र विर्षे नदी पार भए वृक्षनिके माथय प्राय गए । तब लोकनिकी दृष्टित अगोचर भए । तब कई एक तो विलाप करते ग्रासू डारते घरनिकू गए पर कई एक राम लक्ष्मण की घोर घरी है दृष्टि जिनने सो काष्ठ से होय रहे पर कई एफ मूर्छा साय धरतीपर पड़े पर कई एक ज्ञान को प्राप्त होय जिनदीक्षाको उद्यम भए, परस्पर कहते भए-जो धिक्कार है या प्रसार संसार को पर धिक्कार इन क्षणभंगुर भोगनिको ! ये काले नाग के फणा समान भयानक है । ऐसे शूरवीरनिकी यह अवस्था तो हमारी कहा बात ? या शरीरको चिक्कार ! ओ पानीके बुदबुदा समान निस्सार, जरा मरण इष्टवियोग अनिष्टसंयोग इत्यादि कष्ट का भाजन है। धन्य हैं वे महापुरुष भाम्यवंत उत्तम चष्टाने धारक ! जे मरकट (बन्दर) की भौह समान लक्ष्मी को चंचल जान नजिकर दीक्षा धरते भए । या भांति अनेक राजा बिरक्त होय दीक्षा को सम्मुख भए । तिनने एक पहाड़ीकी तलहटी में सुन्दर वन देख्या, अनेक वृक्षनिकर मड़ित महासघन, नानाप्रकार के पुष्पनिकर शोभित, जहाँ सुगंध के सोलुपी भ्रमर गुजार कर हैं तहां महापवित्र स्थानक में तिष्ठते ध्यानाध्ययनविष तीन महातप