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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
ग्राम को बाहिर निकस्या, वह धीर कैसे तेरे मंदिर में प्राने हे निर्लज ! धिक्कार है तुझ पापनको चंद्रमाको किरण समान उज्जवल वंशकों दूषरण लगा वनहारी, यह दोनों लोक मैं निद्य अशुभक्रिया लेने आचरी पर तेरी यह सखी वसंतमाला याने तोहि ऐसी बुद्धि दीनी, कुलटाके पास वेश्या रहे सत्र काहे की कुशल ? मुद्रिका पर कड़े दिखाए तो भी तहने न मानी, अत्यंत कोम किया। एक क्रूर नाम किंकर बुलाया। वह नमस्कार कर प्राय थाहा भया । तब क्रोध कर केतुमतीने लाल नेत्र कर कहा हे क्रूर! सखी सहित याहि गाड़ी में बैठाय महेंद्रनगर के निकट छोड़ घावो तब क्रूर केतुमती की प्राज्ञातं सखी सहित अंजना को गाड़ी में बैठाकर महेंद्रनगर की ओर ले चत्या । कंसी है अंजना सुन्दरी ? अति कां है शरीर जरका महा पवनकर उपड़ी जो बेल ता समान निराक्षय, प्रति भाकुल कांतिरहित दुःखरूप अग्निकर जल गया है हृदय जाका, भयंकर सासूकों कछु उत्तर दिया, सखीकी और धरे हैं नेत्र जाने, मनकर अपने अशुभ कर्मको वारंवार निदतों अश्रुधास नाखती, निश्चल नहीं है चित जाका, सो क्रूर इनको लेय चात्या सो क्रूरकर्मविधं प्रति प्रवीण है । दिवसके अंतमें महेंद्रनगरके समीप पहुंचा कर नमस्कार कर मधुर हे देवी! मैं अपनी स्वामिनी को प्राज्ञातें तुमको दुःख का सो क्षमा करहु । ऐसा कहकर सखी सहित सुन्दरीकू' गाड़ी उतार विदा होय गाड़ी लेय स्वामिनीपे गया । जाय विनती करी - आपकी आज्ञा प्रमाप तिनकू तहां पहुंजायश्राया है।
वचन कहता भया । कारण कार्य किया,
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श्रथानंतर महा उत्तम महा पतिव्रता जो अंजवासुन्दरी ताहि पतिके योगतं दुःख के भारत पीड़ित देख सूर्य भी मानों चिताकर मंद हो गया अर रुदनकर अत्यंत लाल होय गए हैं नेत्र जाके, ऐसी अंजना सो मानो या नेत्र की अस्पताकर पश्चिम दिशा रक्त होय गई, अंधकार फैल गया, रात्रि भई, अंजना के दुःख किसी जो श्रासून की धारा तेई भए मेघ तिनकर मानों दसों दिशा श्याम होय गई अर पंछी कोलाहल शब्द करते भए सो मानों जना के दुखतं दुःखी भए पुकारें हैं। वह अंजना पदावरूप महादुःख का जो सागर तामें डूबी क्षुधादिक दुःख भूल गई प्रत्यंत भयभीत श्रश्रुपात नाखं, रुदन करें, सो वसंतमाला सखी धैर्य बंधार्य, रात्री को पल्लव का सांथर बिलाय दिया सो याकों चिद्रा पंच भी न आई। निरंतर उष्ण अश्रुपात पढ़ सो मानों दाह के भयतें निद्रा भाज गई, बसंतमाला पांच दाने खेद दूर किया, दिलासा करी, दुखः के योगकर एक रात्री वर्ष बराबर बीती । प्रभात में सांयरेको तजकर नाना संकल्प विकल्पनिके सैकड़ानि शंका करि अति विह्वल पिता के घर की