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________________ पग-पुराण भाषा २६७ और चाली । सखी छाया समान संग चाली। पिता के मन्दिर के द्वार जाय पहुँची । भीतर प्रवेश करती द्वारपाल ने रोकी, दुःख के योगत और ही रूप होय गया सो जानी न पड़ी। तब सनी ने सब वृतांत कहा सो जानकर शिलाकवाट नामा द्वारपाल ने एक और मनुष्य कों द्वारे मेलि प्राप राजा के निकट जाय नमस्कार करि विनती करी । पुत्री के प्रागमन का वृत्तान्त कह्या। तब राजा के निकट प्रसन्नीति नामा पुत्र बैठ्या हुता सो राजा ने पुष को आज्ञा करी-तुम सुम्मुख जाय उसका शीघ्र ही प्रवेश करावो. तुम तो पहिले जावो और हमारी हासवारी लेयार करावों, हम भी पीछेत प्रा है, तदि द्वारपालने हाथ जोड़कर नमस्कार कर यथार्थ विनती करी । तब राजा महेंद्र लज्जाका कारण सुनकर महा कोपवान भए । घर पुत्रों आज्ञा करी कि पापिनीकू नगर ते काढ़ देवो, जाकी वार्ता सुनकर मेरे कान मानों वन कर हते' गए है । तब एक महत्साह नामावड़ा सामंत, राजा का प्रतिवल्लभ, सो कहता भया, हे नाथ ! ऐसी प्राज्ञा करनी उचित नहीं, बसंतमालासों सब ठीक पास लेहु । सासू केतुमती अति क्रूर है पर जिनधर्मत परान्सुख है । लौकिक सूत्र जो नास्तिकमत ताविष प्रवीण है तानं बिना विचार्या झूठा दोष लगाया । यह धर्मात्मा श्रावकके प्रतकी भरणहारी, कल्याण प्राचार विधं तत्पर पापिनी सासू ने निकासी है पर तुम भी निकासो तो कौनके घारग जाथ, जैसे व्यापकी दृष्टित मृगी त्रासकों प्राप्त भई संती महा गहन वनका शरण लेय, तसे यह भोलो निष्कपट सासूः मांकित भई तुम्हारे शरण प्राई है, मानों जेठके सूर्य की किरण के संतापत दुःखित भई महावृक्षरूप जो तुम सो तिहारे पाश्रय पाई है। यह गरीबिनी, विह्वल है आत्मा जाका अपवादरूप जो आताप ताकर पीड़ित तिहारे प्राश्रय भी साता न पार्च तो कहां पावै ? मानों स्वर्ग ते लक्ष्मी ही आई है। द्वारपाल ने रोकी सो अत्यत लज्जा को प्राप्त भई । दिलखि करि माया ढांकि द्वार खड़ी है, अापके स्नेह कर सदा लाइली है. सो तुम दया करो. यह निर्दोष है, मंदिर मांहि प्रवेश करावो पर केतुमती की ऋरता पृथ्वी विर्ष प्रसिद्ध है। ऐसे न्याय रूप अचन महोत्साह सामंत ने कहे, सो राजा कान न धरै, में कमलोंके पत्रनिविर्षे जलकी बूद न रहर तसे राजा के चित्त में यह बात न ठहरी । राजा सामंत सों कहते भए कि यह सवी वसंतमाला सदा पाके पास रहै पर याही के स्नेह के योगते कदाचित् सत्य न कहे तो हमको निश्चय कैसे मावै, यात याके शोल विष संदेह है, सी याको नगर निकास देख। जब यह
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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