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पद्म-पुराण-भाषा
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बंदू शुद्ध स्वभावको, घर सिद्धनको ध्यान । संतनको परणामकर, नमि दृग व्रत निज ज्ञान ।।१२।।
शिवपुर दायक सुगुरु नमि, सिद्धलोक यश गाय । केवल दर्शन ज्ञानको, पूजू मन वच काय ।।१३।। यथाख्यात चारित्र अरु, क्षपक रिण गुगा ध्याय । धर्म शुक्ल निज ध्यान को, वंस भाव लगाय ।।१४॥ उपशम वेदक क्षायिका, सम्यग्दर्शन सार । कर वंदन समभावको. पूजू पंचाचार ।।१५।। मूलोत्तर गुगण मृनिनके. पंच महाव्रत आदि । पंच समिति और गुप्तत्रय, ये शिवमूल अनादि ॥१६॥ अनित्य प्रादिक भावना, सेज चित्त लगाय । अध्यातम अागम नमू, शांति भाव उरलाय ॥१७॥ अनुप्रेक्षा द्वादश महा, चितवें श्रीजिनराय । तिनकी स्तुति करि भावसों, षोडशकारण घ्याय ।।१८।। दशलक्षणमय धर्मकी, धर मरधा मनमांहि । जीवदया सत शील तप, जिनकर पाप नसाहि ॥१६॥ तीर्थकर भगवान के पूजू पंच कल्यागा । और केबलनिको नमू, केवल अरु निर्वागा ॥२०॥ श्रीजिन तीरथ क्षेत्र नमि, प्ररणमि उभय विधि धर्म । थुतिकर चहुँ विधि संघकी, तनकर मिथ्या भर्म 1॥२१॥ वंदू गौतम स्वामिके, चरण कमल सुखदाय । चंदू धर्म मुनीन्द्रको, जम्बूकेलि ध्याय ॥२२।। भद्रबाहुको कर प्रणमि, भद्रभाव उरलाय । बंदि समाधि सुवंषको, ज्ञानतने गुण गाय ।।२३।।