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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
मंगलाचरण :
दोहा चिदानंद चतन्य के, गुण अनन्त उरधार । भाषा पद्मपुराण की, भाषू श्रुति अनुसार ॥१॥ पंच परमपद पद प्ररामि, प्रणमि जिनेश्वर वानि । नमि जिन प्रतिमा जिनभवन, जिन मारग उर आनि ।।२।। ऋषभ पाजत संभन प्रणाम, नामे अभिनन्दनदेव । सुमति जु पद्म सुपापर्व नमि, करि चन्दाप्रभु सेव ।।३।। पुष्पदंत शीलल प्रमि, श्रीश्रेयांस को ध्याय । वासुपूज्य विमलेश नमि, नमि अनंतके पाय ।।४।।
धर्म शांति जिन कुन्थु नमि, और मल्लि यश गाय । :: मुनिसुव्रत नमि नेमि नमि, ममि पारसके पाय ।।५।। बर्द्ध मान वरवीर नमि, सुरगुरुवर मुनि वंद । सकल जिनंद मुनिंद नमि, जैनधमं अभिनन्द ।।६।। निर्वाणादि अतीत जिन, ममों माथ चौबीस । । महापद्म परमुख प्रभू, चौबीसों जगदीश ॥७॥ होंगे तिनको दिकर, द्वादशांग उरलाय । सीमंधर आदिक नमू, दश दुने जिनराय ।।८।। विरहमान भगवान ये, क्षेत्र विदेह मझारि । पूजें जिनको सुरपती, नागपती निरधार ।।६।। द्वीप अढाईके विर्षे, भये जिनेन्द्र अनंत । होगे केवलज्ञानमय, नाथ अनन्तानन्त ।।१०।। सबको वंदन कर सदा, गणधर मुनिवर धाय । क्षेवलि श्र तिकेलि. नमू, प्राचारज उवझाय ।।११।।