SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ পীল স্বপ্ন '२४६ प्रजापाल धारि मन तोष, निज उर को छोड्यो सव दोष । धनथाल महल उतंग बनाय, मॉडत कनक रतन जडवाय ॥६३।। तहां रहै श्रीपाल नरेस, मणासुन्दरि नारि सुभेस । दासी दास नगर बहु दये, ढोल्यो महल और घर ढये ।।६४।। तिन में सब कोढी थिति करे, पूरन कर्ग किये फल भरे । अब वह मेणासुन्दरि नारि, भक्ति करे पति की चित धारि ।।६।। अंतिम पाट: मैणा सुन्दरि अजिका, तजी समाधि ले काय । छेदि नारि के लिंग कू, सु स्वर्ग हरिथाय ।।७४५।। तीन ज्ञान राजत सदा, महा रिद्ध जुन थान । आयु पर्यंत सुख भोगि के, चय नर व सिव जान ।।७४६।। -.-.. चोपई और अजिका थी बहु सोय, जे सब स्वर्गथान में जोय । कोउ छेदि लिंग स्वर जान, देवी कूष उपजी प्रान ।।७४७॥ प्रथम स्वर्ग षोडषलों सही, देवी देव अजिका भई। या विधि श्रीपाल नर राय, धर्म प्रभाब थकी सुखपाय ।।७४८।। सुर नर गति सुख भोगि अपार, फेरि सकल दुख कोने छारि । सुर नर खग पूजित पद होय, सिद्ध सथान पहुँचे सोय ।। ७४६ ।। ----- सोरठा ऐसो जानि हित मान, भानि प्रमाद दसा सही । अष्टानिक विधि जानि, शक्ति सधा करनो सही ।।७५७।। जो सम दृष्टी होय नंदीश्वर द्रत कु फर। सो सुरनर खग होय, शिव थानक सुख सू लहै ।।७५१।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy