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२४८ महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व
मन लाय ॥ ५४ ॥ १
कन्या कही सुनो मो पिता, सुभ अरु असुभ कर्म ते हृता । जो जो सुख होनो सो होय, ताकू मेट सकै नहि कोय ||५०॥ ऐसे धीर वौर वचन दियो, सब जन सुनि के अचरज लयो । सब जन कन्या की युति करे, कन्या धन्य धन्य सब उचरे || ५१ ॥ कोढी पति पायो है सही, तो भी मन चिंता न लही अंतेपुर सब ही नर नारि, हा हा मुख ते वचन उचारि ॥५२॥ मन मिलि विनती करवाहि भो नृप कोढी कून विवाहि । मेणासुन्दर रूप जिहाज, कोढी कू न देहि महाराज || ५३ || राय हठी मानी नहि कोय, मंत्री फिर बचन भाखी सोध । कोढी कू न कन्या दे राय, तू बुधिवान देखि मूरख राय व इम कही भो मंत्री यह नृप है सही । छत्र चमर सिंघासन जोय, राज चहन देखत है सोय ।। ५५१ यह वर जोग्या सुता कू सही, मैं परखाऊ' निस्चे कही । वरज्यो सति कछु समझ्यो नाहि, इम कहि सत्र के वचन नसाय | ५६ ।। प्राय विवाह तरणी विधि करो, कन्या रूप दसा अति धरी । वर जुत प्राय पिता के पास, नमस्कार कीनो गुण रास ॥ ५७ ॥ तब नृप मैंरगासुन्दरी जोय, रूप थकी रति सी अब लोय । देख्यो बर कोहि तनहीन, मन पछतावो पति आप निचो आपन कु सही मैं मति हीरा यहु कहा वही । शोध की मन नांहि विचार, कोढी कहा कहा बर नार ।।५।। जानि पुद्धि में कूप मभार, डारि दई कन्या गुरण सार | मोसो ही नहीं सठ कोय फिरि मन राजा निमचे जोय ||६० ॥ कन्या कही सत्य सो बात, कर्म करे सो होय विख्यात । मै तो निमत मात्र करतार, कारज होय कर्म अनुसार ॥ ६१ ॥ पुन्ध पाप मो जीव के होय, ताकू मेट सके नहि कोय | यह अब मो मन निश्च भयो, इम लखि राय सोच तजि दियो ।। ६२ ।।
लखि कीन || १८ ||