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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व
है धर्म अकिंचन पाप निकंचन,
दोष न रंचन धृति धारा ।।४२७।। है अतिछति बारा अधिकारा,
ब्रह्म विहारा अविकारा । है विश्व विथारा विश्व अधारा,
अनुभव वारा अति प्यारा ॥ है अति भवकूला अति रस झूला,
अनुभव मूला अजरारा । है अतिशय भूपा अनुभव रूपा,
अति गृणधारा प्रति प्यारा ।।४२८॥
है अतिधन नामा अति धनधामा,
अति अभिरामा प्रतिकारा ५ है मुनिमन हारा अति दुखटारा,
___ अनुभव वारा अति प्यारा ।। है प्रतिहित धारा अहित प्रहारा,
__ दोऊ टारा जिन प्यारा । है देव अरागा बीतसुरागा,
अतिवद्ध भागा जग प्यारा ।।४२६।।
सवैया ३१ असि मसि कृषि और वानिज को लेस कोऊ, नांहि तेरै पुर मैं न शिल्पि पशु पालना । पठन न पाठन है शिष्य गुर भेव नाहि स्वामि और सेवक को भेद न निहालनां ।।