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________________ २४० महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व है धर्म अकिंचन पाप निकंचन, दोष न रंचन धृति धारा ।।४२७।। है अतिछति बारा अधिकारा, ब्रह्म विहारा अविकारा । है विश्व विथारा विश्व अधारा, अनुभव वारा अति प्यारा ॥ है अति भवकूला अति रस झूला, अनुभव मूला अजरारा । है अतिशय भूपा अनुभव रूपा, अति गृणधारा प्रति प्यारा ।।४२८॥ है अतिधन नामा अति धनधामा, अति अभिरामा प्रतिकारा ५ है मुनिमन हारा अति दुखटारा, ___ अनुभव वारा अति प्यारा ।। है प्रतिहित धारा अहित प्रहारा, __ दोऊ टारा जिन प्यारा । है देव अरागा बीतसुरागा, अतिवद्ध भागा जग प्यारा ।।४२६।। सवैया ३१ असि मसि कृषि और वानिज को लेस कोऊ, नांहि तेरै पुर मैं न शिल्पि पशु पालना । पठन न पाठन है शिष्य गुर भेव नाहि स्वामि और सेवक को भेद न निहालनां ।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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