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अध्यात्म बारहखड़ी प्रभु अतिगति कहिया अतिरति रहिया,
अति गणधरिया अतिसारा । है अतिगुरण धुग्यिा अतिभव तरिया,
अतियम हरिया प्रतिप्यारा ॥११॥
अरति जु हरिया रंग सुकरिया,
संघ उधरिया प्रतिकारा । गुण संग न तजिया संग जु तजिया,
मुनिगण भजिया क्षम वारा । जिन अति गति पिडा आप अपिंडा,
प्रवत छंडा अनिफारा । है अतनु सु दंडा ब्रत नहि खंडा,
उपर मयंडा जनप्याग ।।४१२।।
है अनघ अधारा प्रमग प्रहारा,
अगम अपारा अघटारा। है तथ्य सु धारा अस्तिथ धारा,
अविधि विडारा अतिप्यारा ॥ अति परगुरण रहिता अति निज सहिता,
सुरनर महिता प्रतिपारा । है अतिरस रसिया, अति गुण लसिया,
अवगम वसिया अतिध्यारा ।।४१३।।
अति अतिथि अधारा बितथ विदारा,
पस्य सुधारा अतिमारा । है अतत विडारा अव्रत डारा,
अतिन्नत वारा प्रतिप्यारा ।।
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