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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-क्तिव एवं कृतित्व
तो सौ अतिशय धरण जुतूही,
और न दोसै जग में ज्ञेय । मेरी इह विनती सुनि देवा, ।
देह अभै पद निज मैं लेय ।।४०८।”
दोहा अति थारौं अाधार तू, अनत वसः जगदेव । अदभुत अध्यालम विमल, तु ही. प्रकास अछेव ।।४०६।।
त्रिभंगी छंद
अथ अतिप्यास की बालअतिमतिकारा अतिश्र तिसाग,
__ अवधि अधारा अतिधारा । है अति सुख सारा अमन प्रचारा,
अवगम* -वारा धर प्यारा ।। है अति विचरइया अति बिहर इया.
अति विथरइया अतिसारा । हैं लक्षण गारा अतिशय कारा,
अतिसमवारा अतिप्यारा ।।४५३ अति ही वित भरिया अतित्रित धरिया,
अति गाँत हलिया अतिहारा । है अत्युच्चंडा अति सुस्ख पिडा,
अति विहंडा अति प्यारा ॥ अनगम कहता ज्ञान