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प्रध्यात्म वारहखड़ी
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तू है अतिकामो पुनि जु अकांमो.
राम विरामो नाम सहा ।। 'अतिकर्म ज़ नाशा अति जु अनाशा,
रहित जु पासा संतधगे । जीवनि को पालक दोष जु टालक,
काम हारक सर्व सुरो
३६७४।
दोहा
तू ज अनातंको प्रभू, है जु अनावे सोहु । पूजि अनादेशो तुदी, व्यापि रह्यो जगि जोहु ।। ३६८।। तेर्ग निर्माता नहीं, रचिता जग मैं कोय । 'अनिर्मातृ भगवान न, अनिर्वाच्य को होय || ३६६ अनि भूतीश्वर असम तू. कर पात्रा जु महंत । तोहि जपं निज मात्र सु. 'विनु गात्रो भगवंत ॥४००।। प्रतिजेता अतिभूप तू, अतिधर्मी अतिधर्म । अति जु भर्भ रहितो तुही, अति शर्मी विनु कर्म ।।४० १.।।
कवित्त
'तू अतिकम जु टारक स्वामी,
शुभकर्मा नहि अशुभ जु कोय + प्रतिपुण्यो शुद्धत्व मात्र है,
तोमो देव जु तूही होय ।