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________________ प्रध्यात्म वारहखड़ी २३१ तू है अतिकामो पुनि जु अकांमो. राम विरामो नाम सहा ।। 'अतिकर्म ज़ नाशा अति जु अनाशा, रहित जु पासा संतधगे । जीवनि को पालक दोष जु टालक, काम हारक सर्व सुरो ३६७४। दोहा तू ज अनातंको प्रभू, है जु अनावे सोहु । पूजि अनादेशो तुदी, व्यापि रह्यो जगि जोहु ।। ३६८।। तेर्ग निर्माता नहीं, रचिता जग मैं कोय । 'अनिर्मातृ भगवान न, अनिर्वाच्य को होय || ३६६ अनि भूतीश्वर असम तू. कर पात्रा जु महंत । तोहि जपं निज मात्र सु. 'विनु गात्रो भगवंत ॥४००।। प्रतिजेता अतिभूप तू, अतिधर्मी अतिधर्म । अति जु भर्भ रहितो तुही, अति शर्मी विनु कर्म ।।४० १.।। कवित्त 'तू अतिकम जु टारक स्वामी, शुभकर्मा नहि अशुभ जु कोय + प्रतिपुण्यो शुद्धत्व मात्र है, तोमो देव जु तूही होय ।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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