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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अजर अजन्मा देव, न जु अकर्मा राजई। दै भव भव निज सेव, तू सु अभा है प्रभु ।।३४६Py छु ल प्रकर्मा देद कर्म हौर तेरै नहीं । तू सव मर्म सुबेव, तु जु अचओ चर्म विनु ।। ३५०।। तू जु अश्रम्मा नाथ, श्रम खेद जु तो मैं नहीं । भ्रमहर सुख तुत्र साथ, तू जु अवर्मा वर्म बिनु । १३५११ वर्म जु बगलर नाम, मम विना वगतर किस । तेरे प्रावै काम, तु जु स्वशर्मा राम है ।।३५२।। सबको रक्षक नाथ, तातें सवको बम तू । मरमी तु बड़हाथ, मर्म न छेदै कोय को ।। ३५३।।
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सवैया तेईसा तू जु अमातृ अपितृक देव सदा जु अपुत्रक है जु अलौकिक । तू जु प्रबंधु अबंधननाथ प्रवाधक एक महाजू अत्रौकिक ।। तू जु असाधक साध्य स्वरूप प्रदंभिक ईश जिनेश अरोपिक । तू जु अराधक तार अराध्य अनंध अखंध असंध अगौफिक ।।३१४।"
तू जू प्रबंधक अदंक नाहि, अनिदित नंदित है जू अरंजित । तु जु अनिगित इगित नाहि, अनंकित नाथ सदाजु अजित ।। तू जू असंकित है जु अवंकित. देव प्रलंधित नित्य अगंजित । तू जू अचंभिक है जू अमंदित, ईस अखंडित सब अचंजित ।।३५५।।
तू जु अनिदक पूज अवेदक, नित्य अफंदक है जु अबदक । नू जु अखंडक वोध अमंदक. पाप निकंदक है जु अछदक ।। तू जु अहंडक हैं जु अदंडक नाथ अछेडक नित्य अकंटक । पुस न नारि सुरो नवि मानव, ढोर न नारक तू जु अषंढक ।। ३५६।।