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अध्यात्म बारहखड़ी
अतिसुख सागर प्रतिमुर आगर,
अतिनर नागर प्रतिजन जागर |
प्रति सु उजागर प्रभुरतनाकर,
सुर नर चाकर तू जिन ठाकुर || ३४२||
अतिभव ज्ञायक अनुभव दायक,
प्रतियुग चायक प्रतिसुर पायक
अतिभव नाशक अभय प्रकाशक,
अतिगति भासक प्रभव विकासक ।। ३४३ ॥
प्रतिश्रुनि कारक प्रतिमुनि तारक,
प्रतिमुनि धारक प्रतिमुनि पारक । प्रति ग्रायकर अति बावकधर,
अति समकित घर समकित धरकर ।। ३४४ ।।
अतिभव भयहर प्रतिशिव सुखकर,
प्रति परमेश्वर अति भूतेसुर । प्रति सुग हर गति अति जु त्रिजगपति,
२२३
प्रतिछति भतिजति अतिमिति प्रतिगति ।। ३४५
सोरठा
तू अनुकूल सदैव प्रतिकूल नहि स्वापि । दुजे ङ्ख तोस देव, अनुकूला ते भव तिरें ।। ३४६ ।। अवग्रह ईहा आदि भेद जिंके मतिज्ञान के । सुभाषैजु अनादि, तीन सतक भर तीस छह || ३४७ || अमन प्रतिद्धी तू जु. इंद्री और अनिद्रिया 1 तो महि नाही पूज, नाम अनिद्री मन तरणीं ॥ ३४८ ॥ १