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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
छंद वेसरी
अति तू भूषा अति निरदूषन,
__ अतिहि तृप्त प्रभु प्यास म भूषन । अति नीरै प्रभु मानहु दूरन,
अति जड चूरन अति सुख पूरन ।।३३६।। + अति जग पारग प्रति शिव मारग,
अति सु उधारक घर जिन मारग* ॥१३३७।। अति भू मोचक अतिगुण रोचक,
अति दुखरोधक अतनु असोचक । अति भू दायक, अतिगुणः लायक,
अतिमुनि नाधक अतिरस भायक ।। ३३८।। प्रतिक्षम क्षमकर अतियम यमघर,
अतिशम दमकर अतिजप तपवर । अति भू क्षमपर अति यतनाकर,
अति र उपरमकर प्रति समताधर ।।३३६।। अति भू पोषक अतनु बिसोषक,
प्रतिजन मोषक अतिहित घोषक । अवगुण दारक समकित कारक,
अतनु प्रभारक अमन प्रचारक ॥३४०।। अतिनर अतिभर प्रतिकर, .
अतिवर अतिपर प्रतिचर अतितर । अतिचिर अतिथिर अतिगिर, अतिगुर,
अतिधर अतिहर अतिरि जिनवर ।।३४१।। + शिव मारग कहता-मोक्ष मारग, कल्याण मारग, [मुल प्रति की टीका * यह पद्य दो पक्तियों का है। X उपरम कहता वैराग्य । ।