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________________ २२० महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व वाकी नांव जु भित्र तू जु है साचौ मिश्रा । ग्र नहीं तो तुल्य तू जु अति रश्मि विचित्रा || अह्नि करा अवगम मई, ग्रहो ग्रहोकर अरुण तु । ग्रज भाव कर देव है. सेत न स्यांम न अरुण तू ३१३२७ || सुप्रनि को नाम तू जु" असुभृत् गरणनाथा । अतुल प्रमाण जु ईश, असम सम तू जु अनाथा ॥ परिणत चदर सूर नांहि नख ति सम तेरे | मानो अभिमान तजु हरि साहिब मेरे ॥ प्रवधिन प्रबिधिन तो विष, प्रतिविधि मूल जु तू जिना । अतिगति ध्यान निदान तू अतुलित शमकर तु दिना १३२८ ।। सोरठा प्रति अतिगति तु देव, गति गति को ज्ञायक प्रभु । सुखदायक है सेव, अन्य न चाहें अनंत प्रभू ।। ३२६ ।। छप्पय जो जु अविद्या कंद तासु को है जु निकंदा | अनुपम काय सु तू ज् पूजि तू अखिल अनंदा ॥ प्रति सुगम कहै तू जु देव तु प्रभव विहारी । प्रभव भषक जे जीव तोहि पांवें न उधारी ॥ अगम गमक जे पापिया तोहि न पायें नाथ जी । अगम गमक फुनि जोगिया तजहि न तेरी साथ जी ||३३०|| १ अभूत कहता प्राणी जीव त्यांका गरण समूह त्यांकी नाथ है । [मूल प्रति की टीका ]
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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