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महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व वाकी नांव जु भित्र तू जु है साचौ मिश्रा । ग्र नहीं तो तुल्य तू जु अति रश्मि विचित्रा || अह्नि करा अवगम मई, ग्रहो ग्रहोकर अरुण तु । ग्रज भाव कर देव है. सेत न स्यांम न अरुण तू ३१३२७ ||
सुप्रनि को नाम तू जु" असुभृत् गरणनाथा । अतुल प्रमाण जु ईश, असम सम तू जु अनाथा ॥ परिणत चदर सूर नांहि नख ति सम तेरे |
मानो अभिमान तजु हरि साहिब मेरे ॥ प्रवधिन प्रबिधिन तो विष, प्रतिविधि मूल जु तू जिना । अतिगति ध्यान निदान तू अतुलित शमकर तु दिना १३२८ ।।
सोरठा
प्रति अतिगति तु देव, गति गति को ज्ञायक प्रभु ।
सुखदायक है सेव, अन्य न चाहें अनंत प्रभू ।। ३२६ ।।
छप्पय
जो जु अविद्या कंद तासु को है जु निकंदा | अनुपम काय सु तू ज् पूजि तू अखिल अनंदा ॥ प्रति सुगम कहै तू जु देव तु प्रभव विहारी । प्रभव भषक जे जीव तोहि पांवें न उधारी ॥ अगम गमक जे पापिया तोहि न पायें नाथ जी । अगम गमक फुनि जोगिया तजहि न तेरी साथ जी ||३३०||
१ अभूत कहता प्राणी जीव त्यांका गरण समूह त्यांकी नाथ है ।
[मूल प्रति की टीका ]