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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व कहैं अनीक जु फोज को नीक अनीक जु गरानिकी। तू अनीकधर गुगामईशा पूरहि भुमिनि को ।।३६६। सुप्त अनीक जु धार इद्र है लेरो दासा । पट् सेमाघर चऋिदास को होय जु दासा ।। अवर सकल नृप च्यारि धारंही सेना स्वामी । तु सवको पति ईश एक बद्ध भूप अनामी ।। तो समसेना तो कने, अवर छोर दीव नहीं । तू अनीकपति एकाली अमित अनीक जु तोमहीं ।।३२०।। तू जु अलीक न होय तोहि नहि लहहि अलीका । अन्नत त्यक्त दयाल तू जु है नाथ सुनीका ।। अतिशयवंत अनंत तू जु जिन अति मुनिनाथा। अनुचित वीत अभीत एक तू अमित जु साथा ।। अतिरित भूपो अतिप्रती अतिविरतो अवनीप तू । अकरम देव अतिहितू एक एव जगदीप तु ।।३२१।।
अतिसय सागरनाथ सकल अन्याय अतीता । तू जु अमंनि अमंत्र मंत्रमय तू जु अजीता ।। नाहि अमात्य जू कोह होय तेरै दरवारा। दुर्गकोट को नांहि अाप दीर्ष इक भारा ।। तो सौ रावल तू सही अजड अकर चिनमय प्रभू । एक रावलौ रावरौ और नाहि रावलक भू ॥३२२।।
अभिजित जतिपति तू जु पूज अति नगन स्वरूपा। अतिशम्मतिम देव तू जु अतिशय बडभूपा ॥ अतिशय तंत्र जु एक अवर नहि तो विनु अतिशय । तू प्रतिभूति विशालनाथ तूं रहित सकल भय ।।
१ अमात्य कहता परधान । मूल प्रति की टोका ।