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________________ अध्यात्म बारहाडी अनुभूती जो लछि पोर को लछि जु नाही । तू अनुभूति स्वरूप वह जु तोही के माही । व्रतरूपो समधार तू अक्रिय भाव वितीत है। क्रिया रहित तू प्रक्रियी कूटस्था जगजीत है ॥३१५।। तू अघ छेदक देव तू जु है अतत विहंडी। असत विहंडक तू जु पूज अभिनंद प्रखंडी।। अति ब्रह्मश्वर ईश धोश तू है जु अरूपी । परगट रूप दयाल एक तु ही जु अनूपी ।। अति यतिभूपो अतिशयी अतिशय रूप अनूप है। अतिगति रूपो अतिधृती अतिचंद्र जु अतिभूप है ।। ३१६१ अरति बितीते तू जु पूज - अनय वितीता। तू जू अपुण्य बितोत पुण्य पापनि ते बीता ।। रहित अनीति मुनीति तत्वनि नीत जु तूही। तु अपराध वितीत जीत नू कर्म समूही ।। सदा जु अरीति अनीति ते अधरम ते न्यारौ तु ही। तु जु अनाशामय जिती अमविजीत कहै सही । ३१७ ।। प्रमति कुमति नहि संगि, संगि तेरं निज बोधा। अगति उधारक देव तु जु निजरत अति सोधा ।। अतिक्रम वितिक्रम मांहि नाहि तेरै अति चाग । अरगाचार को लेश नांहि तेरै जु लगारा ।। तू अति चारु मनोज्ञ है अनुचरगण तेरे नहीं। अनुक्रम क्रम नदि पाइए, नांहि अनारज तो मही ।। ३१८।। अशुभ वित्तीतसु तू जु पूज तु असुधि विजोता । मोहतगी जु अनीक एक तं ही सब जीता ।। तेरे नांहि अनीकनंत गुण ते जु अनीका । नीका ते जु दयाल नांहि को तिन समनीका ।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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