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महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व
अखिल प्रदेशी सिद्धि स्वरूपा,
अतिसय थूल असाध्य अनूपा ।
तु ग्रप्राकृत देह जु स्वांमी,
तु जु अवाध्य अराध्य अरांमी ||२८||
तु जु अभक्त सुभक्त न काकी,
तू सुं प्रभु तारक भगता को
तू जु अनाकृति प्रकृति रहिता,
अचन्नातम
अकृत अकृति बोध जुसहिता ||२०||
तू जु अरुधा
अचर अचंपा,
बोथ भवकी तू जुषा ।
"
अखिलातम अकुलातम स्वामी,
अकलातम अमलातम नांमी ।। २६१ ।।
अजडातम
अमितातम
भूपा,
अमितीस अनूपा ।
प्रगती गती दायक तू ईशा,
असित भाव वर्जित जगदीसा || २६२॥
संता पावे
अन्न औषधी शास्त्र जु श्रभया,
ए चउदांन कहै तु विभया । अन्न पान निरदूषण लेक, तोहि जु
ध्यांवें निज मन देकं ।। २६३ ।। तत तेरा,
तू निरदूषण भूषण मेरा
अन्न बीए पर जलहि जुछारणा,
इह् तेरी मत है जु प्रवाणां ।। २६४ ||
१
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१ अकपट से १ [ मूल टीका ]
२ प्रगति गति मोक्ष को नाम के जहां सौ फेरि गति नहीं ।