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________________ अध्यात्म बारहखड़ी अनत सु अधिकाधिक्य तुही जो, अनत सुदिन करते जसही जो। अमत निशाकर जीत नियंता, अनत होकर रम्मि जयंता ।। । अतत विजित ईश अकेला, असुधि विजित धीश अचेला । वस्तु अशुद्ध न तों मैं पड़ए, केवल शुद्ध रूप नू गइए ॥२८४! नाहि अनातम भाव जु तोमैं, हरह अनरतम भाव जु मो में । तो बिनु आतम भाव न लहिये, तजे अनातम तोहि जु गहिये ॥२५५।। अस्ति करंता अस्ति धरता, तु अस्तित्व स्वरूप अनंता । तू अनाप्त भावनि ते न्यारा, तोहि अनाप्त न पांबहि प्यारा २८६।। अस्ति जु काय पंच हैं स्वामी, तिनको भासक तू जु अनामी ।। अस्ति निरूपा अस्ति अधारा, अस्तिर नास्ति स्वरूप अपारा । २८७।। अस्ति नास्तिको प्रगट जु ईशा, अस्ति नास्ति धर है जगदीशा । अमित प्रदेशी गुण जु अनंता, गुरण पर्याय स्वभाव धरता ॥२८८।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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