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________________ २१३ अध्माम बारहखही अन्न जला विनु और जिकेही, __ जिह्वा स्वाद जु होइ तिकेही। ते नही स्वार्दै तेरे भक्ता, अन्न वारि ले तो महि रक्ता ।।२६५।। 'अणु भोजन ले तोहि जु ध्यावे, सर्व स्वाद जै दूरि वहांनै । ते निज स्वाद लहैं निज भक्ता, जिन रस चाखि जु विषय विरता ।।२६६।। छंद पाधरी अरिविंद चक्षु परिविंद पाय, अरिविंद हस्त अति गंध काय 1 'अरिविंद वदन जगजीत देव, मधुकर मुनि सुर नर असुर भेव 1२६७॥ अतिनंदानंद अनंद देव, अति अकथ अपूरब असम टेव । अतिनाथ जु देव अनंत नाम, __ अतिसाथ जु एक अनंत धांम ।।२६८ ।। अतिहाथ अछेव अवेव वेद, अरगुमति अमती किम योज्ञ सेव । अतिहित जु अनंत अनंत ज्ञान, ___अतिमित जु अनंतानंत मान ||२६६॥x ०० पन्ना पूर्ण होने में हमारे क्रम में १ संख्या कम पड़ती है। वह पद्य संख्या मूल प्रति में २६६ सं. वाली नहीं है । इस प्रकार हमने अपने क्रम में प्रवरोध नहीं किया है । x
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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