________________
महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्वा
अरजन पुत जू, अधमनां, नाव अभिमनां जास । सो तेरे परसाद तो पायो अमर विलास ।।२६१।। अकलंक को निकलंक द्वे, भाई जिनमत दास । तिनकी तुम राखी कला, कियो वोधमत नाम ।।२६२।। कुमर अभैरुचि अभमती, भाई बहन सुजांन । ते तुम कीनं प्रापुन, धरे पंथ निरवान ।।२६३।। अद्भुत लोसी को नहीं, जग दातार जगेस । मोहू दीजै मोस्त्र मग, मुनि विनती सुजिनेस ।।२६४।। तू अनादि अनिधन प्रभु, तू अविक्त अतिविक्त । अहमिद्रनि कर अच्यं तू, तू अतिंद्र जग तिक्त ।।२६५।।* तू अमर्त दर्शी प्रभू, अर अगाध भववार । अतिगाहन तू गहन हर, मोहू पार उतार ।।२६६॥ तु अलक्ष लखिया विभू, तू अगम्य गम को जु । जे अगम्य गम काज ना, अत्र होलक तिन की जु ।।२६७।। जे अभक्ष भक्षक जना, निनको निदाकार । जे प्रतत्व रोचक नरा, तिनको नाहि उधार ॥२६८।। अहो अहिस्य स्वरूप जी, परम अहिसा कार । सदा अहिंसक देव जौ, कर सकल उपगार ।।२६६।। अहो रात्रि मुनिबर जपें, जाौं ते निज रूप । पावै अल्प काल में, वह मुनि पति जग भूप ।।२७०।। अह्नि विष भोजन करें, पिवहि नरजनी नीर । अहिन विष मैथुन तजं, तुव मत रल गृहि धीर ।।२७१।।
* प्रति में २६६ संख्या नहीं है, पर हमने कमशः संन्या दी है। इसी कारण
आगे ३०० की संख्या में एक छंद कम रह गया है ।