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अध्यात्म बारहखड़ी
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अह्नि दिवस को नाम है, तु ही जिनवर अह्नि। कर्म काठ जाल न परो, जो इक दीसे वह्नि ॥२०२॥
छंद वैसरी
५ तत्व अनेहा अविहित स्वामी,
अचल अखंडित अलित धामी। अगणित द्रव्य अरूपी जोई,
___अचर अमूरति अमर जु होई ।।२७।। अतुल प्रदेशी एक प्रदेशी,
प्रचुरातम जड़ रूप अलेशी । अणु भरिताखिल लोक निवासी,
काल द्रव्य जो अकल अभासी ।२७४।। समवरती जो है जु असंखा,
वर्तन लक्षन अलख अकंखा । द्रव्य सुगुरण पर्याय समूहा,
वह जु अनामी सर्व जु दहा ।।२७५।। काल चक्र परणति है ताकी,
पर्यय रूप कदापि न थाको । तामैं ही भरमत हौं नाथा,
दीनानाथ गहीं मुझ हाथा ।।२७६।। - . .. .. .. -.- .-- ... -. - ... . . . १ अनेहा कहता काल [मूल प्रति की टीका) २ व्यवहार परगति काल की समय घड़ी प्रहर दिन रात्रि इत्यादि
छ अर निश्च परणति षटगुणी हानि वृद्धि छ [मुल प्रति की टीका)