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________________ अध्यात्म बारहखड़ी २०१ अह्नि दिवस को नाम है, तु ही जिनवर अह्नि। कर्म काठ जाल न परो, जो इक दीसे वह्नि ॥२०२॥ छंद वैसरी ५ तत्व अनेहा अविहित स्वामी, अचल अखंडित अलित धामी। अगणित द्रव्य अरूपी जोई, ___अचर अमूरति अमर जु होई ।।२७।। अतुल प्रदेशी एक प्रदेशी, प्रचुरातम जड़ रूप अलेशी । अणु भरिताखिल लोक निवासी, काल द्रव्य जो अकल अभासी ।२७४।। समवरती जो है जु असंखा, वर्तन लक्षन अलख अकंखा । द्रव्य सुगुरण पर्याय समूहा, वह जु अनामी सर्व जु दहा ।।२७५।। काल चक्र परणति है ताकी, पर्यय रूप कदापि न थाको । तामैं ही भरमत हौं नाथा, दीनानाथ गहीं मुझ हाथा ।।२७६।। - . .. .. .. -.- .-- ... -. - ... . . . १ अनेहा कहता काल [मूल प्रति की टीका) २ व्यवहार परगति काल की समय घड़ी प्रहर दिन रात्रि इत्यादि छ अर निश्च परणति षटगुणी हानि वृद्धि छ [मुल प्रति की टीका)
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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