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________________ अध्यात्म बारहखड़ी अहमिद्रनि तही धारेगौ, नव पचानुत्तर तारंगी । अमराणी जु शची है देवा, भव अंतरि पाच' भव छेवा ।।२५४ । दाहिण याका लोक जु पाला, तुव अपि पाव पद जु विशाला। प्रसन पान खादिमनहि तेरै, क्षुधा त्रिषा नहि तोहि जु धेरै ।।२५५ ।। अस्त्रादिक अर भूषन कोई, वस्त्रादिक तेरे नहि होई । अदन भक्ष को नाम जु कहियें, तेरै असन वसन नहि चहिये ॥२५६ ।। अहमेवादिक तो मैं नाही, तू जु अहंकृत रहित महाही । अहंकार अरमान न तेरे, दूरि करौ लागे प्रभु मेरै ॥२५७।। दोहा अहंकार मय इह जगत, याको त्याग सुमोष । इह तुम्हरौ उपदेश है, उत्तम गुणगण कोष ।।२५.८॥ त्यागि अहंकृति जिन तुझे, भ्यायो दीन दयाल । तिनि पायो तू गुणमई, निगुण परम कृपाल ॥२५६ ।। कुमर अशोक : रोहणी, तेरे भक्त अनन्य। ते अशोक धरत किय, अति सुखिया अति धन्य ।।२६०।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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