________________
२०६
महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व ,
सूरी व फुनि कुकरी हवो,
महादुखी हूं वह जन भूवो । भयो अंध चिडाली देहा,
जिन तुमसौं कोनों नहि नेहा ।।२४८।। ह्र चिडाली तुब गुन भायो,
अगनिभूति की सवद सुहायौ । नागश्री नामा द्विज पुत्री,
भई धर्म रुचि अति हि पवित्री ।।२४६ ।। सुरमित्र के सुनि जिन वैना,
तुम ध्याये त्रिभुवन पति जैना। तुम परसाद षोडशम सुर्गा,
तिन पायो प्रभु बहु सुग्व दुर्गा ।।२५०।। फुनि सुकुमारी सेठ ह्व स्वामी,
तुमकौं ध्याय भयो बहु नामी । अति उपसर्ग जीति वह ध्यांनी,
गयो जु सरवारथसिद्धि ज्ञानी ।।२५१।। इक भव धरि वह तो मैं मिलि हैं,
तेरो दास न जग मैं रुलि है। तेरे दास अनंतह उधरे,
तोकौं पाय बहुत जन उबरे ||२५२।। अमरपती है लेरौ दासा,
__ इक भव धरि पाने शिव वासा। वसु विधि लोकांतिक सुर ऋषि जे,
इक भव धरि पानै ऋषि गति जे ॥२५३।।