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अध्यात्म बारहखड़ी
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अग्निभूति अर वायु जु भति,
सालिग्राम ग्राम में मोती । 'पहिली मुनि सौं वाद अ कीनी.
पाछै तेरो धर्म जु चीनौं ॥२४२।। ते दोऊ लें स्वर्ग पठाये,
बनके अशुभ समस्त उठाये । 'अग्निभूति तै सप्तम भव मैं,
कृष्ण पुत्र व पाये तुव मैं ॥२४॥ अग्निभूति को जीव जु मदनां,
भयो प्रद्युम्न मदन जु कदनां । वायुभूति भौ शंबु कुमारा,
दोऊ तुव भजि उतरे 'पारा ।।२४४।। प्रवर विष ह्व ते हूँ भैया,
कोसांवी नगरी जु वसया । जेठी बन मै अनि जु भूती,
बहुरौ सहमति वायु जु भूति ।।१५।। 'पले तोकौं तन मति ध्यायो,
जिन मारग को गुण ब्रहु गायो । तात तेरै शिवपुर प्रायौ.
सुमित्र गुर को मन भार्या ।।२४६।३ दूज तोकौं ध्यायो नाही,
भयो गुरद्रोही जग माही । कोड़ी है मूवो सो पापी,
भयो गदही अति संतापी ॥२४७९