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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अकीर्ति को मुक्ति जु दीनी,
अर भरतेस थको भलकानी ।
दिक्षा लेत जु भरथ उभारधी,
अग्रज चक्री पार उतारयो ||२३६/०
अग्रेश्वर त सबकै आखें
सुर नर मुनिजन तुव पद लागे । अप्रधान नू ग्राम प्रधानां
सकल सुज्ञायक श्री भगवानां ।। २३७॥ अ कहिये जग मैं हरिहर को,
ते ध्यांचे केवल पदरकौं । हरि नारायण हर जो रुद्रा
इनकी भेद न जानहि क्षुद्रा ||२३||
हरि हर मुनिवर जिनकों घ्यावें,
जिन विनु जग जन जन्म गुमावे | अन्य नारि सम मिथ्या परपति,
जो मै धारी सठमति दुखतति ॥ २३६ ॥ ॥
सो मेसे मेटी जग नाथा.
तिज परगति को देहु जु साथा । पर पररणति तें में दुख पायौं,
आप विसारि सु जन्म मायाँ ।। २४०॥
अमित अपार जीव तें तारे,
ते मोपें किम जाहि सम्हारे । पै गुर की सुनि वांणी स्वामी,
कैयक भाषे भाष नामी || २४१ ।।
* भावार्थ- हरि कहतां वासुदेव श्रथवा हरि कहता इंद्र पर हर को रूद्र सो सारा केवल व्यवस्था में घ्यावें छं । [ मूल प्रति की टीका |