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________________ २०४ महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व अकीर्ति को मुक्ति जु दीनी, अर भरतेस थको भलकानी । दिक्षा लेत जु भरथ उभारधी, अग्रज चक्री पार उतारयो ||२३६/० अग्रेश्वर त सबकै आखें सुर नर मुनिजन तुव पद लागे । अप्रधान नू ग्राम प्रधानां सकल सुज्ञायक श्री भगवानां ।। २३७॥ अ कहिये जग मैं हरिहर को, ते ध्यांचे केवल पदरकौं । हरि नारायण हर जो रुद्रा इनकी भेद न जानहि क्षुद्रा ||२३|| हरि हर मुनिवर जिनकों घ्यावें, जिन विनु जग जन जन्म गुमावे | अन्य नारि सम मिथ्या परपति, जो मै धारी सठमति दुखतति ॥ २३६ ॥ ॥ सो मेसे मेटी जग नाथा. तिज परगति को देहु जु साथा । पर पररणति तें में दुख पायौं, आप विसारि सु जन्म मायाँ ।। २४०॥ अमित अपार जीव तें तारे, ते मोपें किम जाहि सम्हारे । पै गुर की सुनि वांणी स्वामी, कैयक भाषे भाष नामी || २४१ ।। * भावार्थ- हरि कहतां वासुदेव श्रथवा हरि कहता इंद्र पर हर को रूद्र सो सारा केवल व्यवस्था में घ्यावें छं । [ मूल प्रति की टीका |
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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