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अध्यात्म वारहखड़ी
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अर्जन पांडव तें जु उधारयी,
द्रपद सुता की सब दुख टारयो । धर्मपूत पर भीम उधारे,
नकुल सु सहदेवा निजकारे ।।२३०।। अनिरुध कुमर प्रद्युमन पूता,
पूत पिता ते कोने पूता । अवधिनाथ तूं अनधि स्वामी,
अनरल भूप सुधारका नामी ।।१।। अनरन रावसु रधुपति दादा,
तुव भजि मुक्त भयो तजि कादा । अतिबल खगपति महबल ताता,
तुव भजि सिद्ध भयो अति पाता ।।२३२।।
अपर प्रकंपन राव उधारा,
मेघेस्वर कौतून तास । राव अकंपन कासीराया,
श्रीसुलोचना तात कहाया ।।२३३॥ मेघेस्वर धनापुर की पत्ति,
पति सुलोचना को शिब सुखति । नाथ स अर सोम जु वंमा,
तें जु उधारे तू जु निरंशा ॥२३४।। तव परसाद भये राजा,
तब परभाव किये निज काजा। अर्कपति तू अर्क उधारा,
तू अर्केन्द्र अर्क गरग तारा ॥२३५।।