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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अति असपरस जु चंडालादिक,
तो तं शिव पायो धरि भव इक । अर रिण निवासी जे मुनिराया,
अवनी तज ते मुक्ति पठाया ।।२२४।।
अभयातम तू देव अभेवा,
__ अभय कुमार कियो जु अछेवा । अचिंतनाथ जु अर्चा तुम्हारी,
काचे ते गा पा समती ॥२२५।। अमरपुरी सुख भोगि बहुत जुग,
नर 8 अमरण हौंहि रहित रुग । अष्ट जिती ध्वनि तुम्हरी जिनपति,
जे घ्यावे निजि मनि तजि सब छति ।। २२६।। ते निज निश्चय पाय स्वरसरति,
पहुंचे लोक शिखर तजि जगतति । अब्जोपमक्रम देव तुम्हारे,
अलि सम सुर नर मुनिवर कारे ।।२२७।। तजि अभिमान जपं जे जग जन,
ते अवनीघर पावहि पद जिन । अनुचर होय जु सेवहि तोही,
त्यागि अहंकृत भाव विमोही ।।२२।। अनुचर तारक एक तुही है,
तू अपवर्ग जु दायक ही है। एक अनुझित भाव सु भू है,
तु जु अहंकृत रहित प्रभू है ॥२२६ ।।