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________________ अयुत लक्ष कोट्यादिक गिनती अध्यात्म बारहखड़ी ग्रमित अनंत असंख जु एका. अमर भारती उदधि प्रसंख असंखि जु दीपा, संख्या नांहि सुत्त जु प्रनेका १२१८ || अस्सी च अधिका लख, जौंनी, ग्रहिता रे तिन को दीपक तू अवमीपा । चारुदत्त अगणित जीवा तें जु उधारे, मेरी मेटि जु करन मौनी ॥ २१६ ॥ अहिकों ग्रहिपति को पद दीर्या अगणित कम तं जु पछारे । ग्रहि पतनी पदमावति कौनी, अर्गानि जरत जिह नाम सुनीयो ।। २२० ।। दोऊनें प्रति भक्ति जु चीनी । अजहूं सुरकारे, तोसी तू ही अमर अधारे ||२२|| दोयो तुब नांमी, अज पायो सुरलोक सुधामी जीवक सेठ सुनायो मंत्रा, नमोकार नामा मरल सुन्यौं स्वाने चितधारी, शिवतत्रा ||२२२॥ अघ रहित भयो शुभकारी । प्रति पापातम सार जु मेया, तोतें सुर पद सुख बहुलेया ।। २२३ ।। २०६
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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