________________
२००
महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अर्क विमान जु योजन अठसै,
मनुज लोकथी उपरि निवस | सनि माल है सर सी.
ससि सूरिज सब तोहि नमसी ॥२१२।। ससि अर अर्क जु तेरै बसि है,
तू त्रिभुवन पति सन्त्र को ममि है। तारागृह नक्षत्रादिक जे,
तेरे दास जु शकादिक जे ।।२१३।। योतिगको इंद्र जु है चंदा,
अर्क प्रतिदी अहि करंदा । सातसंकरे अर निवैगनि,
योजनतारा मंडल जो फुनि ।।२१४।। मनुज लोक थी इह जु विचारा,
नव सत योजन योतिष धारा । योतिष को मंडल दससी परि,
योजन तारागण ते ऊपरि ॥२१५।। सर्व ज्योतिसी तेरे दासा,
ज्योतिरूप तु परम उदासा । अष्टाधिक दश सत शुभलक्षण,
तेरे कहिये तू जू अलक्षगा ।।२१६।।
अष्टोत्तर शत लक्षण स्वामी,
नवसै विजन जे अभिरामी। ते सव धारहि तेरी वपु जो,
तू परमातम शिवपद पथजो 1॥२१५।।