________________
प्रस्तावना
तिन ढिग मैं जाऊ' सदा, पदु शास्त्र सुभाय । तिनको वर उपदेश लै, मैं भाषा बनवाय ।।११।।
कवि ने अपनी रचनाओं में महाराज जयसिंह, उनके प्रसिद्ध नगर सांगानेर एवं उसमें होने वाले धार्मिक उत्सबों का अच्छा वर्णन किया है । उस सग महाराजा विशद के सुख नहाराजा अर्यातहतिय का मामेर में शासन था।
देश ढुढाहर जागौं सार, तामै घरम तणु अधिकार । बिसनसिंह सुत जैसिंह राय, राज कर सचकू सुखदाय ।। देश तनी महिमा अति बनी, जिन-गेहा करि प्रति ही बनी । जिन मन्दिर भवि पूजा करै, के इक व्रत ले केइक धरै ।। जिन मन्दिर करवाये नवा, सुरग विमान तनी कर धवा । रथ जात्रादि होत बहु जहां, पुन्य उपाइन भवियन तहां ।।
खुशालचन्द काला के अब तक जिन ग्रन्थों की उपलब्धि हो चुकी हैबे निम्न प्रकार हैं
१. हरिवंश पुराण, २. यशोधर चरित, ३. पपपुराण, ४. प्रत कथाकोश, ५. जम्बूस्वामी चरित, ६, घन्यकुमार चरित, ७, सद्भाषितावली, ८. उत्तर पुराण, ६. चौबीस महा राज पूजा, १०. शान्ति नाथ पुराण, ११. वर्तमान पुराण।
—ये सभी कृतियां हिन्दी भाषा की सुन्दर कुतियां हैं, जिनमें काव्य के सभी लक्ष्ण उपलब्ध होते हैं । हरिवंश पुराण ३६ मंघियों का महाकाव्य है, जिसमें २२३ तीर्थकर नेमिनाथ एवं 'महाभारत की कथा का विस्तृत वर्णन है। पुरासा में दोहा, चौपाई, प्ररिल्ल, सवैय्या, सोरठा ग्रादि छन्दों का उपयोग हुना है। इसका रचनाकाल संवत् १७८० वैशाख सुदी तीज है। इसी तरह उत्तर पुराण का रचना काल सं० १७६६ मंगसिर सुदी दशमी का है। यह भी संघियों में विभक्त है तथा इसको वर्णन पेली प्राचार्य गुणभद्र के उत्तर पुराण के अनुसार ही मिलती है। इसको भाषा में राजस्थानी एवं ब्रज का सम्मिश्रण है। वैसे यह पुराण दोहा चौपाई छन्द प्रधान है; किन्तु डिल्ल, छप्पय जैसे छन्दों का प्रयोग भी हुआ है।
'व्रत कथाकोश' में कवि ने २३ ब्रत कथानों का संग्रह किया है। जिनकी रचना सं० १७५२ से १७८७ तक की गयी थी । कुछ कथाए तो छोटे-२