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महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व
काव्यों के बराबर हैं, जिनकी छन्द सं० ३०० से भी अधिक हो गई है । कथाओं में धार्मिक पुट है तथा उनमें नैतिकता के वर्णन की प्रमुखत्ता है। मध्य युग में जन-साधारण में कथाओं के प्रति जो आकर्षण पैदा हुआ था उसके परिणाम स्वरूप कवि ने ऐसी रचनाओं को छन्दोबद्ध किया था ।
खुशालचन्द ने अपने साहित्य के माध्यम से जन-साधारण में जो जागृति उत्पन्न को थी, उसने सारे राजस्थान को ही नहीं; किन्तु उत्तर भारत की जैन समाज में भावात्मक एकता स्थापित करने में अत्यधिक योग दिया था। खुशालचन्द समन्वयवादी कवि थे । इसलिये हिन्दी में रचना भी उसी दृष्टि से किया करते थे ।
कविवर दौलतराम अथवा महापंडित टोटर मल्ल से कवि का साक्षात्कार कभी हुआ श्रथवा नहीं- इसके बारे में तीनों ही विद्वानों ने अपनी रचनाओं में कुछ उल्लेख नहीं किया। लेकिन खुशालचन्द भी महाराज जयसिंह के कृपापात्र थे, और दौलतराम उनके राजदूत थे, इसलिए दोनों में अवश्य ही मित्रता रही होगी। तीनों ही कवि समाज के थलग २ वर्ग का नेतृत्व करते थे; इसलिए यद्यपि वे परस्पर में अधिक सम्पर्क में रहे भी तो भी एक दूसरे के मध्य साहित्यिक परिचय तो रहा ही होगा । टोडरमल :
नहीं हों,
महापंडित टोडरमल कचिवर दौलतराम के समकालीन विद्वान हो नहीं थे, किन्तु वे उनके घनिष्ट मित्र भी थे। महाकवि द्वारा पुराण ग्रंथों की भाषा टीका टोडरमल की विशेष प्रेरणा के कारण ही सफल हो सकी थी। जिस मनोयोग से टोडरमल ने गोम्मटसार श्रादि ग्रन्थों की हिन्दी में भाषा टीका को भी उससे भी अधिक मनोयोग से कवि ने पद्मपुराण आदिपुराण एवं हरिवंश पुराण की भाषा की थी । टोडरमल के ग्रंथ धत्यधिक गम्भीर एवं गुढ़ शैली में लिखे गये हैं, तथा साधारण पाठक के लिए सहज गम्य नहीं है, जबकि दौलतराम ने अपने सभी ग्रंथ साधरण पाठकों के लिए निवद्ध किये। इसलिए जितना जबरदस्त प्रचार दौलतराम के ग्रन्थों का हो - सका, उतना टोडरमलजी के ग्रन्थों का नहीं हो सका ।
टोडरमल जी की आयु एवं जन्म संवत् दोनों के बारे में विद्वानों की धारणाएं बदल रही हैं। पहिले उनको आयु २६-२७ वर्ष की ही मानी जाती थी। लेकिन राजस्थान के अजमेर के भण्डार में "सामुद्रिक सुरुप लक्षण""
१ राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रंथ सूची- पंचम भाग - पृष्ठ संख्या १२०५